भारत की सांस्कृतिक परंपराओं में शरद पूर्णिमा का विशेष स्थान है। यह वह दिन है जब वर्ष भर की ऋतुओं में सबसे सुंदर, शीतल और उज्ज्वल पूर्णिमा रात का आगमन होता है। माना जाता है कि इस रात चंद्रमा सोलह कलाओं से परिपूर्ण होकर अमृत वर्षा करता है, और उसकी चांदनी में स्नान करने से तन और मन दोनों को ऊर्जा, स्वास्थ्य और शांति प्राप्त होती है।
???? शरद पूर्णिमा का आध्यात्मिक महत्व:
शरद पूर्णिमा को कोजागरी पूर्णिमा भी कहा जाता है — जिसका अर्थ है “कौन जाग रहा है।” लोक मान्यता के अनुसार, देवी लक्ष्मी इस रात धरती पर भ्रमण करती हैं और जो व्यक्ति जागकर ईश्वर का ध्यान करता है, भक्ति में लीन रहता है, उसे माता लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है। इसलिए इस दिन रात्रि जागरण, भजन-कीर्तन और पूजा का विशेष महत्व है।
???? खीर का वैज्ञानिक और धार्मिक महत्व:
इस दिन का प्रमुख प्रतीक खीर है। परंपरा के अनुसार खीर को चांदनी में रखकर “चंद्र-अमृत” से पवित्र किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि चांदनी में रखी खीर से शरीर को शीतलता, मानसिक संतुलन और रोग प्रतिरोधक शक्ति मिलती है। वैज्ञानिक दृष्टि से देखा जाए तो इस समय वातावरण में औषधीय तत्वों की मात्रा बढ़ जाती है, जो शरीर के लिए लाभकारी मानी जाती है।
???? लोक परंपराएँ और सामाजिक सौहार्द:
शरद पूर्णिमा केवल धार्मिक नहीं, बल्कि सामाजिक उत्सव भी है। गाँवों और कस्बों में सामूहिक रूप से पूजा, भजन और रात्रि भोज का आयोजन होता है। महिलाएँ लक्ष्मी पूजा करती हैं और घरों में दीप सजाती हैं। झारखंड और संथाल परगना क्षेत्र में यह पर्व कृषि समुदाय के लिए विशेष महत्व रखता है, क्योंकि यह नई फसल के आगमन और मेहनत की फलश्रुति का प्रतीक भी है।
???? स्वास्थ्य, शांति और प्रेम का संदेश:
शरद पूर्णिमा हमें यह सिखाती है कि प्रकृति के साथ तालमेल बिठाकर ही सच्ची सुख-समृद्धि संभव है। इस दिन का उजाला केवल चंद्रमा का नहीं, बल्कि आशा और आस्था का भी प्रतीक है।
संथाल हूल एक्सप्रेस (हिंदी दैनिक) समस्त देशवासियों को शरद पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएँ देता है और प्रार्थना करता है कि यह रात्रि सबके जीवन में आरोग्य, सौभाग्य और समृद्धि लेकर आए।
“चंद्रमा की शीतलता और खीर की मिठास से भर जाए आपके जीवन का हर कोना — यही है शरद पूर्णिमा का सच्चा संदेश।” ????✨