मुख्यमंत्री के नाम प्रस्ताव पारित, वैधानिकता बनाए रखने की चार सूत्रीय मांग
संथाल हूल एक्सप्रेस संवाददाता।
रामगढ़: जिले नईसराय ईदगाह में रविवार को मरकजी अंजुमन इत्तेहादुल अंसार की एक महत्वपूर्ण मजलिस का आयोजन किया गया, जिसमें आलिम और फाजिल डिग्री की वैधानिकता और शैक्षणिक मान्यता को लेकर गंभीर चिंता जताई गई। मजलिस में सर्वसम्मति से एक चार सूत्रीय प्रस्ताव पारित किया गया, जिसे मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को भेजे जाने का निर्णय लिया गया। इस प्रस्ताव में झारखंड सरकार से मांग की गई है कि वर्ष 2023 में झारखंड एकेडमिक काउंसिल द्वारा आलिम एवं फाजिल डिग्री को दी गई स्नातक एवं स्नातकोत्तर समकक्षता को पूर्ववत वैध और मान्य रखा जाए।
एस. अली का आरोप – शिक्षा सचिव कर रहे हैं मनमानी
इस अवसर पर ऑल इंडिया मदरसा युनाइटेड एसोसिएशन (आमया) के अध्यक्ष एस. अली ने शिक्षा विभाग की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े करते हुए कहा कि, “राज्य के शिक्षा सचिव अपनी मनमर्जी से निर्णय ले रहे हैं। आलिम और फाजिल जैसी डिग्रियों को दरकिनार करना ना सिर्फ तालीमी हक का हनन है, बल्कि हजारों छात्रों के भविष्य से खिलवाड़ भी है।” उन्होंने कहा कि यह डिग्रियाँ लंबे समय से मान्य रही हैं और इन्हें खत्म करने की किसी भी कोशिश का पुरजोर विरोध किया जाएगा।
मुख्यमंत्री को भेजे गए प्रस्ताव में प्रमुख मांगें
समकक्षता की मान्यता: झारखंड सरकार द्वारा झारखंड एकेडमिक काउंसिल (JAC) के माध्यम से वर्ष 2023 में आलिम को स्नातक एवं फाजिल को स्नातकोत्तर के समकक्ष जो मान्यता दी गई थी, उसे वैधानिक रूप से बरकरार रखा जाए।
रिजल्ट जारी किया जाए: सहायक आचार्य (भाषा) पद में जिन अभ्यर्थियों ने आलिम डिग्री के आधार पर आवेदन किया है, उनके रिजल्ट तत्काल जारी किए जाएं।
बहाली में शामिल किया जाए: फाजिल डिग्री धारकों को राज्य सरकार की माध्यमिक आचार्य (टीजीटी) बहाली प्रक्रिया में शामिल किया जाए और उनके विषय अनुसार पात्रता दी जाए।
विश्वविद्यालय स्तर पर परीक्षा: वर्तमान शैक्षणिक सत्र में ही आलिम और फाजिल की परीक्षाओं का आयोजन रांची विश्वविद्यालय के माध्यम से सुनिश्चित किया जाए, ताकि छात्रों को समय पर अंक पत्र और प्रमाणपत्र मिल सकें।
शिक्षाविदों और समाजसेवियों का समर्थन
बैठक में शामिल विभिन्न शिक्षाविदों, सामाजिक संगठनों और मौलवियों ने एक स्वर में कहा कि आलिम और फाजिल जैसी धार्मिक डिग्रियाँ देश की सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत का हिस्सा हैं। इन डिग्रियों को शिक्षा व्यवस्था से बाहर करने की कोई भी कोशिश अल्पसंख्यकों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन मानी जाएगी।
ज्ञापन सौंपने की तैयारी
अंजुमन ने घोषणा की है कि एक प्रतिनिधिमंडल जल्द ही मुख्यमंत्री से मिलकर यह ज्ञापन सौंपेगा। साथ ही राज्य के अन्य जिलों में भी इस विषय को लेकर जनजागरूकता अभियान चलाया जाएगा।