रतन टाटा : एक नाम जो भरोसे, मानवता और भारतीयता का पर्याय बन गया


पत्रकार शहीद अनवर के कलम से


आज देश अपने महान उद्योगपति, दूरदर्शी और संवेदनशील इंसान रतन टाटा को उनकी पहली पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि अर्पित कर रहा है। 9 अक्टूबर 2024 को जब उन्होंने अंतिम सांस ली थी, तब केवल उद्योग जगत ही नहीं, बल्कि आम भारतीयों के दिल में भी एक सन्नाटा छा गया था। रतन टाटा सिर्फ एक कारोबारी नहीं थे — वे एक विचार थे, एक मूल्य थे, एक ऐसी प्रेरणा जो यह सिखाती है कि सफलता का असली अर्थ समाज को कुछ लौटाने में है।

रतन टाटा ने अपने जीवन में “टाटा” नाम को केवल व्यापारिक ब्रांड नहीं, बल्कि भरोसे की पहचान बनाया। जब वे टाटा समूह के चेयरमैन बने, तब यह समूह पहले से ही स्थापित था, लेकिन उन्होंने इसे नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया। टाटा मोटर्स, टाटा स्टील, टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज, टाटा पावर — हर क्षेत्र में उनकी दृष्टि, ईमानदारी और दूरदर्शिता की झलक दिखी। उन्होंने भारत को न केवल औद्योगिक रूप से सशक्त किया, बल्कि वैश्विक मंच पर भारतीय कंपनियों को सम्मान दिलाया।

पर रतन टाटा की असली पहचान उनके व्यवसायिक कौशल से ज्यादा उनकी मानवता थी। उन्होंने कहा था, अगर आप तेज चलना चाहते हैं तो अकेले चलिए, लेकिन अगर दूर तक जाना चाहते हैं तो साथ चलिए। इस सोच ने उन्हें कॉर्पोरेट जगत में अलग पहचान दी। उन्होंने कर्मचारियों को परिवार की तरह माना, संकट की घड़ी में समाज के साथ खड़े हुए, और लाभ से ऊपर उठकर मानवीय मूल्यों को प्राथमिकता दी। चाहे मुंबई हमले के समय होटल ताज के कर्मचारियों और पीड़ित परिवारों की मदद हो, या कोरोना महामारी में अस्पतालों को आर्थिक सहायता, रतन टाटा ने हर मोर्चे पर “लाभ से पहले जीवन” की नीति अपनाई। वे ऐसे पूंजीपति थे जिनके लिए हर इंसान की गरिमा मायने रखती थी।

उनकी सादगी उतनी ही चर्चित थी जितनी उनकी दूरदर्शिता। करोड़ों की संपत्ति के मालिक होकर भी वे आम भारतीय की तरह जीते थे। बिना दिखावे, बिना सत्ता की चकाचौंध के। वे अक्सर कहते थे, “मैं वो बनना चाहता हूँ जिस पर मेरे देश को गर्व हो।” और निस्संदेह, वे वही बने। आज जब कॉर्पोरेट दुनिया तेज मुनाफे और प्रतिस्पर्धा की दौड़ में भाग रही है, रतन टाटा का जीवन हमें याद दिलाता है कि व्यवसाय का अंतिम उद्देश्य केवल लाभ नहीं, बल्कि लोककल्याण भी होना चाहिए।

रतन टाटा भले आज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी विरासत हर उस युवा में जिंदा है जो ईमानदारी, नवाचार और सेवा की भावना से देश को आगे बढ़ाना चाहता है। वे चले गए, पर उनकी “टाटा” पहचान — विश्वास, सेवा और भारतीयता की भावना — हमेशा जीवित रहेगी। रतन टाटा को उनकी पहली पुण्यतिथि पर विनम्र श्रद्धांजलि।

लेखक संथाल हूल एक्सप्रेस ज़िला संवाददाता एवं वार्किंग जर्नलिस्ट ऑफ इंडिया झारखंड इकाई के प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य हैं।

Bishwjit Tiwari
Author: Bishwjit Tiwari

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