“मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरो न कोई” — कृष्ण प्रेम की अनंत साधिका मीरा बाई को जयंती पर नमन

संथाल हूल एक्सप्रेस (हिंदी दैनिक) की श्रद्धांजलि

साहिबगंज, 7 अक्टूबर:
कृष्ण प्रेम, भक्ति और आत्मसमर्पण की प्रतिमूर्ति संत कवयित्री मीरा बाई की जयंती पर आज पूरे देश में श्रद्धा और भक्ति का माहौल है।
संथाल हूल एक्सप्रेस (हिंदी दैनिक) ने इस अवसर पर उन्हें नमन करते हुए कहा कि “मीरा बाई का जीवन सच्चे प्रेम, त्याग और ईश्वर भक्ति का अद्वितीय प्रतीक है।”


???? भक्ति और प्रेम की प्रतीक मीरा

राजस्थान के मेवाड़ राजघराने में जन्मी मीरा बाई ने अपने जीवन को सांसारिक मोह से ऊपर उठाकर भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति में समर्पित कर दिया।
उन्होंने लिखा —

“मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरो न कोई।”
यह पंक्ति आज भी उनके प्रेम और भक्ति की गहराई को दर्शाती है।

मीरा बाई का जीवन इस बात का प्रमाण है कि सच्चा प्रेम सीमाओं से परे और भक्ति हर बंधन से मुक्त होती है।


???? कविता और संगीत में जीवित मीरा

मीरा बाई केवल भक्त नहीं थीं, बल्कि एक महान कवयित्री और गायिका भी थीं।
उनके भजन “पायो जी मैंने राम रतन धन पायो”, “पग घुंघरू बांध मीरा नाची रे”, “मने चाकर राखो जी” आज भी भारत के गाँव-गाँव में भक्ति और संगीत का स्रोत हैं।
उन्होंने भक्ति को केवल उपासना नहीं, बल्कि जीवन का मार्ग बना दिया।

????️ त्याग और सामाजिक साहस की मिसाल

राजघराने में जन्म लेने के बावजूद मीरा बाई ने कृष्ण प्रेम के लिए समाज और परिवार से विरोध झेला, पर अपने मार्ग से कभी विचलित नहीं हुईं।
उनकी निष्ठा और साहस ने उन्हें न केवल धार्मिक बल्कि सामाजिक परिवर्तन की प्रेरणा बना दिया।

“मीरा बाई केवल एक कवयित्री नहीं थीं, वे उस चेतना की प्रतीक हैं जिसने भक्ति को लोक की आत्मा बना दिया।
उनकी जयंती पर हमें प्रेम, सहिष्णुता और आत्मसमर्पण का वह भाव अपनाना चाहिए जो समाज को जोड़ता है।”

देशभर में आज भजन संध्या, कथा और संकीर्तन के माध्यम से मीरा बाई को श्रद्धा सुमन अर्पित किए जा रहे हैं।
उनकी कविताएँ आज भी यही संदेश देती हैं कि जब हृदय में भक्ति और प्रेम हो, तो कोई भी संकट मानवता की शक्ति को झुका नहीं सकता।

Bishwjit Tiwari
Author: Bishwjit Tiwari

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