विश्व कपास दिवस पर विशेष रिपोर्ट
साहिबगंज, 7 अक्टूबर:
हर वर्ष 7 अक्टूबर को पूरी दुनिया में “विश्व कपास दिवस (World Cotton Day)” मनाया जाता है, ताकि इस प्राकृतिक रेशे के महत्व और इसके माध्यम से लाखों लोगों की आजीविका को रेखांकित किया जा सके।
इस अवसर पर संथाल हूल एक्सप्रेस (हिंदी दैनिक) ने कहा कि कपास न केवल वस्त्र उद्योग की रीढ़ है, बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था की भी मजबूत कड़ी है।
???? कपास — प्रकृति से लेकर परिधान तक
कपास वह प्राकृतिक रेशा है जो धरती की मिट्टी से निकलकर सीधे हमारे वस्त्रों में अपनी जगह बनाता है।
आज भी भारत जैसे कृषि प्रधान देश में कपास उत्पादन लाखों किसानों की जीविका का प्रमुख स्रोत है।
दिलचस्प बात यह है कि —
“एक टन कपास से साल भर में 5 से 6 लोगों को रोज़गार मिलता है।”
इस प्रकार कपास न केवल कृषि क्षेत्र, बल्कि वस्त्र निर्माण, बुनाई, धागा उद्योग और निर्यात से जुड़ी एक विशाल श्रंखला को जीवित रखता है।
???? भारत — विश्व का प्रमुख कपास उत्पादक देश
भारत विश्व के सबसे बड़े कपास उत्पादक और उपभोक्ता देशों में से एक है।
महाराष्ट्र, गुजरात, तेलंगाना, मध्य प्रदेश, राजस्थान और हरियाणा जैसे राज्य देश के कुल उत्पादन में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं।
भारत का कपास विश्व बाज़ार में अपनी गुणवत्ता और स्थायित्व के लिए प्रसिद्ध है।
???? विश्व कपास दिवस का उद्देश्य
संयुक्त राष्ट्र और विश्व व्यापार संगठन (WTO) द्वारा वर्ष 2019 में पहली बार विश्व कपास दिवस मनाया गया था।
इस दिवस का उद्देश्य कपास उत्पादन से जुड़ी समस्याओं, किसानों के योगदान और सस्टेनेबल (Sustainable) खेती के महत्व को उजागर करना है।
???? स्थानीय स्तर पर पहल
झारखंड जैसे राज्यों में भी कपास की खेती धीरे-धीरे बढ़ रही है।
स्थानीय किसान कपास को वैकल्पिक नकदी फसल के रूप में अपना रहे हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि यदि इसे तकनीकी और बाज़ार सहयोग मिले, तो यह ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए वरदान साबित हो सकता है।
“कपास न केवल एक फसल है, बल्कि यह धरती, किसान और रोज़गार के बीच जुड़ी हुई वह डोर है जो ग्रामीण भारत की आत्मा को मजबूती देती है।”