अब शहर ही जाना पड़ेगा साहब, गांव में तो सिर्फ वादे हैं : श्रमिक
संथाल हूल एक्सप्रेस संवाददाता
देवघर : पालोजोरी प्रखंड में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) के अंतर्गत भुगतान में हो रही भारी देरी ने गरीब मजदूरों की नींद उड़ा दी है। मजदूरी के इंतज़ार में महीनों से तड़पते इन मेहनतकशों की हालत अब ऐसी हो गई है कि वे या तो कर्ज में डूब रहे हैं या फिर अपने गांव-घर छोड़ने को मजबूर हो गए हैं। बीते दिन इस गंभीर विषय पर प्रकाशित एक समाचार ने जैसे उनके दर्द को आवाज़ दे दी हो- अब जिले के विभिन्न प्रखंडों के मजदूर खुलकर सामने आ रहे हैं और अपनी पीड़ा बयां कर रहे हैं। उन्होंने साफ शब्दों में कहा है कि यदि केंद्र सरकार जल्द से जल्द लंबित भुगतान नहीं करती है तो उन्हें पलायन जैसे कठिन कदम उठाने पर विवश होना पड़ेगा।
गांव-गांव में हालात ऐसे हो चुके हैं कि ना तो मनरेगा के किए गए कार्यों की मजदूरी का कोई अता पता है और ना ही कोई इस पर अधिकारी/पदाधिकारी के द्वारा दो टूक हो पाता तथा कोई शुद्ध तक भी नहीं लिया जाता। कुछ लोगों को 3-4 महीनों से मेहनताना तक नहीं मिला है, जिस से उनके परिवारों की स्थिति अत्यंत दयनीय हो चुकी है। प्रखंड क्षेत्र के मजदूर व लाभुकों ने बताया कि हर बार प्रखंड कार्यालय के द्वारा पूछे जाने पर बताया जाता है कि सभी बिल भेजी जा चुकी है, जल्द ही पैसे आप सभी के खाते में चली जाएगी। लेकिन सिर्फ दिन और दिनांक ही गुजर जा रही है पर आज तक खाते में पैसे नहीं आ पाई है। इसी पालोजोरी प्रखंड में भी मनरेगा मजदूरों ने रोष जताते हुए कहा कि वह बार-बार मुखिया और प्रखंड कार्यालय के चक्कर काट चुके हैं, लेकिन उन्हें सिर्फ आश्वासन ही मिला है। अब शहर ही जाना पड़ेगा साहब, गांव में तो सिर्फ वादे हैं, प्रखंड के मजदूरों ने कहां की हम पहले प्रदेश में मजदूरी करते थें, लेकिन सरकार की मनरेगा योजना के भरोसे गांव लौटे, अब कहते हैं भरोसा किया कि अब गांव में काम मिलेगा, लेकिन अब लग रहा है गलती कर दी। फिर से पलायन करना पड़ेगा। तथा आगे अन्य मजदूरों ने भी कहा है कि अगर ऐसी स्थिति ही रही, तो हम सभी को भी पलायन करना ही पड़ेगा, जो सरकार के लिए शर्मनाक होगा। वहीं प्रशासन की तरफ से अब तक कोई ठोस प्रतिक्रिया नहीं आई है। इस चुप्पी ने लोगों में और भी गुस्सा भर दिया है। अब सवाल उठ रहा है, जब देश की सबसे बड़ी रोजगार योजना ही दम तोड़ रही है, तो गरीब कहां जाए? देखना यह होगा कि सरकार मजदूरों की इस पुकार को कब तक अनसुना करती है या फिर कोई बड़ा जनांदोलन जन्म लेने वाला है।