“भक्ति, प्रेम और त्याग की अमर साधिका — संत मीरा बाई जी”जयंती पर श्रद्धांजलि विशेष


🌸 मीरा — भक्ति की वह धारा जो आज भी अमर है

आज भारत संत परंपरा की महान विभूति संत मीरा बाई जी की जयंती श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाई जा रही है।
मीरा बाई का जीवन प्रेम, भक्ति, समर्पण और अदम्य साहस का ऐसा उदाहरण है, जो न केवल भारतीय इतिहास बल्कि विश्व की आध्यात्मिक चेतना में अमर हो चुका है।

उनकी यह अमर पंक्ति —

“मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरो न कोई”
— केवल कविता नहीं, बल्कि भक्ति के परम सत्य की घोषणा है।


🕊️ जीवन परिचय: राजमहल से भक्ति मार्ग तक

मीरा बाई का जन्म लगभग सन् 1498 में राजस्थान के कुड़की (पाली जिला) में हुआ था।
वे मेड़ता के राठौड़ वंश से थीं और चित्तौड़गढ़ के राजा भोजराज की पत्नी बनीं।
किन्तु सांसारिक वैभव और राजसी जीवन उनके हृदय को बाँध न सका — उनके मन में तो केवल श्रीकृष्ण प्रेम का वास था।

मीरा ने बचपन से ही श्रीकृष्ण को अपना स्वामी और सखा मान लिया था।
राजमहल के बंधनों और समाज की रूढ़ियों के विरोध के बावजूद उन्होंने निर्भय होकर भक्ति का मार्ग चुना और जीवन कृष्ण आराधना में समर्पित कर दिया।


🎶 मीरा की काव्य साधना

मीरा बाई केवल भक्त ही नहीं, बल्कि महान कवयित्री और संगीतकार भी थीं।
उनकी रचनाओं में काव्य सौंदर्य, संगीत माधुर्य और आध्यात्मिक गहराई का अद्भुत संगम मिलता है।

उनके पदों में प्रेम, विरह, समर्पण और आत्मानुभूति के स्वर झलकते हैं —

“पायो जी मैंने राम रतन धन पायो”
“मने चाकर राखो जी”
“जोगी मत बनो भाई”

ये भजन आज भी भक्तिमय वातावरण में गूंजते हैं और आत्मा को शुद्ध करते हैं।


💫 मीरा: नारी शक्ति और स्वतंत्रता की प्रतीक

मीरा बाई ने उस युग में समाज की पितृसत्तात्मक सोच को चुनौती दी, जब स्त्रियों को धर्म और दर्शन की चर्चा का अधिकार नहीं था।
उन्होंने अपने जीवन और काव्य के माध्यम से यह सिद्ध किया कि भक्ति में न कोई लिंग, न कोई जाति, न कोई बंधन होता है।

उनकी निर्भीकता ने उन्हें नारी स्वतंत्रता की प्रतीक बना दिया — वे केवल संत नहीं, बल्कि सामाजिक क्रांति की प्रेरक भी थीं।


🌺 मीरा की विरासत आज भी जीवित है

मीरा की भक्ति ने राजस्थान, गुजरात, उत्तर भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में कृष्ण प्रेम का संदेश फैलाया।
उनकी रचनाएँ आज भी भजन संध्याओं, मंदिरों और लोक संगीत में आत्मिक शांति का स्रोत बनी हुई हैं।

उनकी कविताएँ आज भी यह सिखाती हैं कि सच्चा प्रेम वह है जिसमें अहंकार नहीं, केवल समर्पण हो।

मीरा बाई का जीवन हमें यह सिखाता है कि भक्ति केवल पूजा नहीं — यह जीवन जीने की एक पवित्र साधना है।
उनकी जयंती पर संथाल हूल एक्सप्रेस परिवार कोटिशः नमन करते हुए यह संदेश देता है —

🌼 “मीरा जैसी निष्ठा और प्रेम अगर हर हृदय में जागे,
तो जीवन स्वयं ईश्वर की वाणी बन जाए।” 🌼


Bishwjit Tiwari
Author: Bishwjit Tiwari

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