जेएसएलपीएस से अपने सपने साकार कर रहीं महिलाएँ

संथाल हूल एक्सप्रेस संवाददाता

जामताड़ा : जेएसएलपीएस से सशक्त बनी जामताड़ा की महिलाएँ, मेरुन और जायदा की प्रेरक कहानी। जामताड़ा प्रखंड के ढेकीपाड़ा गांव में झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रमोशन सोसाइटी से जुड़कर दो महिलाओं ने गरीबी और ताने-तिश्नों से जूझते हुए आत्मनिर्भरता की एक मिसाल पेश की है। मेरुन निसा और जायदा खातून आज गाँव की अन्य महिलाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत बन चुकी हैं। मेरुन निसा गरीबी से आत्मनिर्भरता तक का सफर, मेरुन निसा बताती हैं कि वह बेहद गरीब परिवार में पैदा हुई थीं और पढ़ाई-लिखाई तक नसीब नहीं हो पाई।शादी के बाद भी गरीबी का साया कायम रहा, क्योंकि उनके पति आलम अंसारी राजमिस्त्री का काम करते थे और परिवार का गुजारा मुश्किल से हो पाता था। जेएसएलपीएस के जन्नत आजीविका सखी मंडल में जुड़ने के बाद उन्होंने 20,000 रुपये का लोन लिया और एक ब्यूटी पार्लर खोला। अब वह हर महीने 8 से 10 हजार रुपये कमा लेती हैं। आज वह प्यालसोला आजीविका क्लस्टर में सचिव और जन्नत आजीविका सखी मंडल में कोषाध्यक्ष का जिम्मा निभा रही हैं। मेरुन कहती हैं मेरे पति ने मेरा हर कदम पर साथ निभाया है, उन्हीं के सहयोग से मैं यह मुकाम हासिल कर पाई हूं। अगर परिवार का सहारा मिले तो कोई राह मुश्किल नहीं रहती। उन्होंने कहा कि मैं चाहूंगी कि सभी महिलाएँ आगे बढ़ें और सपनों को साकार करें। जायदा खातून लॉकडाउन में खड़ा किया सफल कारोबार। जायदा खातून, जो पढ़ाई में मैट्रिक तक नहीं पहुंच पाईं, आज अपनी तीन बेटियों को पढ़ाने का सपना साकार कर रही हैं। उनकी बड़ी बेटी मिहिज़ाम कॉलेज में इंटर की पढ़ाई कर रही है, दूसरी हाई स्कूल में है तो तीसरी कक्षा एक में पढ़ रही है। जेएसएलपीएस के समूह से महज 10,000 रुपये का कर्ज लेकर जायदा ने लॉकडाउन में कपड़े की दुकान खोली और आज वह दुकान दो लाख रुपये से अधिक की पूंजी तक पहुंच चुकी है। अब वह हर महीने 15,000 रुपये से अधिक कमा लेती हैं। जायदा बताती हैं कि जब उन्होंने यह कदम उठाया तो लोगों ने ताने दिए, मगर अब वे दूसरों के लिए मिसाल बन चुकी हैं। वह गांव की महिलाओं को जागरूक करती हैं और उन्हें अधिकारों के प्रति सचेत करने का काम करती रहती हैं। जायदा कहती हैं मुझे मेरे पति और परिवार का पूरा सपोर्ट मिला है, जो मेरे लिए ताकत और हौसले का सहारा रहा है। जब परिवार साथ हो तो मुश्किलें भी आसान हो जाती हैं, मैं चाहूंगी कि सभी बहनें आगे बढ़ें और आत्मनिर्भर बनें। उन्होंने आगे बताया कि समूह से मिला सहारा, तो सपनों को मिला पंख। मेरुन और जायदा जैसी महिलाओं की मेहनत और जज्बा यह बताने के लिए काफी है कि अगर मौका मिले तो ग्रामीण महिलाएँ गरीबी और तंगहाली को मात देकर एक नया इतिहास रच सकती हैं। जेएसएलपीएस जैसे संगठन ग्रामीण अर्थव्यवस्था और महिला सशक्तिकरण में बेहद अहम भूमिका निभा रहे हैं। अन्य को भी संगठन से जुड़कर अपने भविष्य सुधार सकती है।

Bishwjit Tiwari
Author: Bishwjit Tiwari

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