कहां से शुरू हुआ “लेडीज़ फर्स्ट” का कॉन्सेप्ट? — सम्मान नहीं, एक रणनीति से हुई थी शुरुआत

✍️ संथाल हूल एक्सप्रेस सेंट्रल डेस्क


नई दिल्ली, 12 अक्टूबर:
आज के दौर में “लेडीज़ फर्स्ट (Ladies First)” वाक्यांश महिलाओं को सम्मान और प्राथमिकता देने का प्रतीक माना जाता है।
रेस्तरां, बैंक, मेट्रो या किसी सार्वजनिक स्थल पर यह सिद्धांत सभ्यता और आदर का हिस्सा बन चुका है।
लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस शब्द की शुरुआत सम्मान से नहीं, बल्कि रणनीति और सुरक्षा की वजह से हुई थी?


????️ इतिहास में झांकें — जब ‘लेडीज़ फर्स्ट’ था सुरक्षा का परीक्षण

इतिहासकारों के अनुसार, “लेडीज़ फर्स्ट” की जड़ें मध्यकालीन यूरोप से जुड़ी हैं।
उस समय लोग अक्सर गुफाओं, अंधेरी सुरंगों और अज्ञात स्थानों में रहते थे या यात्रा करते थे।
कहा जाता है कि जब कोई नई गुफा या क्षेत्र असुरक्षित होता था, तो पुरुष महिलाओं को आगे भेजते थे, ताकि यह पता लगाया जा सके कि वहाँ कोई खतरा तो नहीं।

अगर महिलाएँ सुरक्षित लौट आती थीं, तो पुरुषों को भरोसा हो जाता था कि रास्ता सुरक्षित है।
इस प्रकार “लेडीज़ फर्स्ट” की अवधारणा की शुरुआत महिलाओं की सुरक्षा नहीं, बल्कि पुरुषों की सुरक्षा जांच के उद्देश्य से हुई थी।


⚔️ मध्यकालीन यूरोप में शिष्टाचार का रूप

बाद में यह परंपरा यूरोप के राजघरानों और अभिजात्य वर्ग में एक ‘सामाजिक शिष्टाचार (Etiquette)’ के रूप में विकसित हुई।
महिलाओं को सामाजिक दर्जे में ऊँचा दिखाने और सभ्यता प्रदर्शित करने के लिए “लेडीज़ फर्स्ट” कहा जाने लगा।
दरबारों में या समारोहों में महिलाओं के पहले प्रवेश को सम्मान और आदर का प्रतीक माना जाने लगा।


???? आधुनिक युग में “लेडीज़ फर्स्ट” का असली अर्थ

आज के समाज में “लेडीज़ फर्स्ट” केवल शिष्टाचार नहीं, बल्कि समानता और सम्मान की सोच का प्रतीक बन गया है।
यह महिलाओं की सुरक्षा, गरिमा और अधिकारों को पहचान देने की दिशा में एक सकारात्मक सामाजिक परिवर्तन का संकेत है।

अब यह परंपरा केवल दरवाज़ा खोलने या लाइन में आगे जाने तक सीमित नहीं, बल्कि
???? महिलाओं के निर्णय लेने के अधिकार,
???? कार्यस्थल पर समान अवसर,
???? और सामाजिक सम्मान का प्रतीक बन चुकी है।


???? समाजशास्त्रियों की राय

समाजशास्त्री मानते हैं कि —

“लेडीज़ फर्स्ट” की पुरानी कहानी भले ही व्यंग्यात्मक या रणनीतिक रही हो,
लेकिन आज यह सभ्यता, संस्कार और समानता के आदर्शों में तब्दील हो चुकी है।

वास्तव में यह इस बात का संकेत है कि समाज ने इतिहास की गलतियों से सीखा है और अब ‘सम्मान पहले’ को अपना मूल सिद्धांत बना लिया है।

Bishwjit Tiwari
Author: Bishwjit Tiwari

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