धनतेरस: आरोग्य, समृद्धि और सकारात्मक ऊर्जा का पर्व — धर्म, विज्ञान और आधुनिक सोच का संगम

अनंत तिवारी

धनतेरस, दीपावली के पांच दिवसीय पर्व का शुभारंभ दिवस है, जो न केवल धन-संपत्ति की प्राप्ति का प्रतीक है, बल्कि आरोग्य और सकारात्मक ऊर्जा के संदेश को भी प्रसारित करता है। यह पर्व इस वर्ष 18 अक्टूबर 2025 (शनिवार) को मनाया जाएगा। त्रयोदशी तिथि दोपहर 12 बजकर 18 मिनट से प्रारंभ होकर 19 अक्टूबर को 1 बजकर 51 मिनट तक रहेगी।

विश्व हिंदू परिषद सेवा विभाग एवं श्रीकृष्ण प्रणामी सेवा धाम ट्रस्ट के प्रांतीय प्रवक्ता संजय सर्राफ ने कहा कि —

“धनतेरस केवल खरीदारी का पर्व नहीं है, बल्कि यह स्वास्थ्य, समृद्धि और संतुलित जीवन का उत्सव है। हिंदू शास्त्रों में धन से पहले आरोग्य की कामना को सर्वोत्तम माना गया है। आज का मनुष्य उपार्जित धन के पीछे इतना भाग रहा है कि वही धन उसे बीमारियों से ग्रसित कर रहा है।”

धनतेरस को ‘धनत्रयोदशी’ भी कहा जाता है। मान्यता है कि समुद्र मंथन के दौरान इसी दिन भगवान धन्वंतरि अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे। यही कारण है कि इस दिन धन्वंतरि जयंती भी मनाई जाती है। भगवान धन्वंतरि को आयुर्वेद और आरोग्य का देवता माना गया है।

इसके साथ ही यह दिन मां लक्ष्मी और धन के देवता कुबेर की पूजा के लिए भी शुभ माना जाता है। धार्मिक मान्यता है कि इस दिन की गई पूजा व्यक्ति को दीर्घायु, स्वास्थ्य और समृद्धि प्रदान करती है।

धनतेरस से जुड़ी एक प्रसिद्ध कथा राजा ह्यम और उनके पुत्र की है, जिसकी अल्पायु की भविष्यवाणी को उसकी पत्नी की चतुराई और दीपदान की परंपरा ने टाल दिया था। इसीलिए इस दिन यमराज के नाम दीपदान (यमदीपदान) की परंपरा चली आ रही है।
संध्या के समय घर के दक्षिण दिशा में एक दीपक जलाना शुभ माना जाता है, जो मृत्यु और अकाल संकट से रक्षा करता है।

धनतेरस के दिन लोग सोना-चांदी, बर्तन, इलेक्ट्रॉनिक वस्तुएं, वाहन और नए लेखा-बही की खरीदारी करते हैं। यह माना जाता है कि इस दिन खरीदी गई वस्तुएं घर में शुभता, समृद्धि और सौभाग्य लेकर आती हैं। व्यापारी वर्ग इस दिन को नए वित्तीय वर्ष की शुरुआत के रूप में भी मनाता है।

इस दिन घर के मुख्य द्वार पर रंगोली, तोरण और दीपों से सजावट की जाती है। संध्या के समय धन्वंतरि, कुबेर और मां लक्ष्मी की संयुक्त पूजा का विधान है।
दीप जलाकर कहा जाता है —

“ओम यमाय नमः दीपं ददामि ग्रहान मम।”

यह मंत्र नकारात्मक ऊर्जा को दूर करने और घर में सुख-शांति लाने का प्रतीक है।

आज के समय में धनतेरस ने धार्मिक, सामाजिक और आर्थिक तीनों रूपों में नई परिभाषा ली है। अब यह केवल सोना-चांदी खरीदने तक सीमित नहीं रहा, बल्कि लोग इस दिन स्वास्थ्य बीमा, निवेश योजनाएँ, डिजिटल गोल्ड और जीवन-सुरक्षा नीतियाँ भी खरीदते हैं।
यह परंपरा बताती है कि आधुनिक समाज ने धनतेरस के मूल संदेश – “आरोग्य ही सच्चा धन है” को एक नए रूप में अपनाया है।

“धन अर्जित करें, परंतु आरोग्य और सद्भाव के साथ।”

संजय सर्राफ ने कहा कि आज के भौतिक युग में धन का महत्व तो है, परंतु धन से पहले तन का स्वास्थ्य और मन की शांति जरूरी है। उन्होंने कहा,

“उपार्जित धन ने हमें जितना सुख दिया है, उतना ही बीमारियों का बोझ भी दिया है। इसलिए इस धनतेरस पर हम सबको ‘धन’ से पहले ‘धन्वंतरि’ की कृपा की कामना करनी चाहिए।”

धनतेरस केवल एक पर्व नहीं, बल्कि भारतीय जीवन-दर्शन का दर्पण है, जो हमें सिखाता है कि धन का अर्थ केवल संपत्ति नहीं, बल्कि सेवा, स्वास्थ्य और संतुलन है। यह दिन धन, धर्म और दया के त्रिवेणी संगम का प्रतीक है — जहाँ आरोग्य सबसे बड़ा धन है और सद्भाव सबसे बड़ा सौभाग्य।

(लेखक वर्किंग जर्नलिस्ट ऑफ इंडिया झारखंड इकाई के अध्यक्ष है)

Bishwjit Tiwari
Author: Bishwjit Tiwari

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