नौनिहालों का कत्ल-ए-बचपन! कोयला ढोते नजर आए पाकुड मे 9-10 साल के बच्चे”

बाल मजदूरी का काला सच: डीसी आवास के बगल से गुजरता बचपन का दर्द”

पाकुड़ जिला मुख्यालय में नौनिहालों का बचपन और भविष्य दोनों ही दांव पर लगे हुए हैं। सरकार द्वारा बच्चों की शिक्षा, स्वास्थ्य और समुचित विकास के लिए करोड़ों रुपये खर्च किए जा रहे हैं, लेकिन हकीकत यह है कि जिला मुख्यालय में खुलेआम 9 और 10 वर्ष के मासूम बच्चे साइकिल पर कोयला ढोते हुए देखे जा रहे हैं।

चौंकाने वाली बात यह है कि ये नाबालिग बच्चे उपायुक्त पाकुड़ के आवास के पास से होते हुए बस स्टैंड और फिर ग्रामीण इलाकों तक कोयला ढोते हैं। महज कुछ पैसों के लिए यह कठिन और जोखिमभरा कार्य करना इन बच्चों के जीवन और भविष्य दोनों को खतरे में डाल रहा है।

कानूनी दृष्टि से गंभीर अपराध

भारतीय क़ानून में बाल मजदूरी पूरी तरह प्रतिबंधित है।

बाल मजदूरी (निषेध एवं विनियमन) अधिनियम, 1986: 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों से श्रम कार्य कराना अपराध है।

भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 374: किसी व्यक्ति से जबरन या अवैध रूप से काम करवाना दंडनीय है।

शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 (RTE Act): 6 से 14 वर्ष तक के बच्चों को मुफ्त व अनिवार्य शिक्षा का अधिकार है।

पाकुड़ के सामाजिक कार्यकर्ता सुरेश मरांडी ने कहा, “यह प्रशासन की सबसे बड़ी नाकामी है कि बच्चों को खुलेआम बाल मजदूरी करते देखा जा रहा है। सरकार करोड़ों खर्च कर रही है लेकिन नतीजे जमीन पर दिखाई नहीं दे रहे हैं।”

वहीं स्थानीय निवासी अनिता कुमारी ने कहा, “इन मासूम बच्चों को स्कूल की किताबों के साथ होना चाहिए, लेकिन वे साइकिल पर कोयला ढोते नजर आते हैं। यह दृश्य बेहद दर्दनाक है और तत्काल प्रशासन को सख्त कदम उठाना चाहिए।”

स्थिति यह दर्शाती है कि प्रशासन की कार्यप्रणाली में गंभीर चूक है। यदि समय रहते कड़ी कार्रवाई नहीं हुई, तो यह नौनिहाल अपने अधिकारों और भविष्य से वंचित रह जाएंगे। बाल मजदूरी की इस कुप्रथा को रोकने और बच्चों को शिक्षा की मुख्यधारा से जोड़ने की तत्काल आवश्यकता है।

Bishwjit Tiwari
Author: Bishwjit Tiwari

Leave a Comment