असम के डिब्रूगढ़ में ” जनी शिकार उत्सव 2025 ” का आयोजन

झारखंड की कृषि , पशुपालन एवं सहकारिता मंत्री शिल्पी नेहा तिर्की हुई शामिल

परंपरा की विरासत को पीढ़ी दर पीढ़ी बढ़ाना है , असम में आदिवासी समाज को मिले उनका हक – शिल्पी नेहा तिर्की

डिब्रुगढ़ : असम के डिब्रूगढ़ जिला पुस्तकालय सभागार में आयोजित ” जनी शिकार उत्सव ” 2025 में झारखंड की कृषि , पशुपालन एवं सहकारिता मंत्री शिल्पी नेहा तिर्की बतौर मुख्य अतिथि शामिल हुई . ऑल आदिवासी विमेंस एसोसिएशन ऑफ असम ( AAWAA ) एवं ऑल आदिवासी स्टूडेंट एसोसिएशन ऑफ असम ( AASAA ) के संयुक्त तत्वावधान में इस उत्सव का आयोजन किया गया . यूनेस्को की को – चेयरपर्सन डॉ सोनाझरिया मिंज सहित अन्य गणमान्य अतिथि इस उत्सव में शामिल हुए . इस मौके पर मंत्री शिल्पी नेहा तिर्की ने कहा कि जनी शिकार उरांव जनजाति द्वारा हर 12 साल पर मनाया जाने वाला पारंपरिक उत्सव है . जो मुगलों के खिलाफ आदिवासी महिलाओं की रोहतासगढ़ किले की जीत की याद दिलाता है . इस आयोजन में महिलाएं पुरुषों के वस्त्र पहनकर शिकार के लिए निकलती है . ये महिलाओं की वीरता और साहस को प्रदर्शित करता है . उन्होंने कहा कि AAWAA ने 2025 से एक ऐसी परंपरा की शुरुआत की है जो वर्षों से चली आ रही है . 12 साल के बाद बेशक कौन कहां रहेगा , ये नहीं कहना मुश्किल है. लेकिन परंपरा ऐसी विरासत है जिसे हम पीढ़ी दर पीढ़ी छोड़ कर जाते है . मंत्री ने कहा कि 200 साल पुराने शोषण का दर्द असम के आदिवासी समाज से जुड़ा है . टी ट्राइब्स राज्य में लचर स्वास्थ्य व्यवस्था , बच्चों की शिक्षा , कम वेतन पर ज्यादा काम करने की मजबूरी और सबसे ज्यादा जरूरी ST की सूची में अपना नाम दर्ज कराने के दर्द से जूझ रही है . महिला सशक्तिकरण की दिशा में पिछले 200 साल से संघर्ष चल रहा है . इस संघर्ष को मुकाम तक पहुंचाने के लिए हम सभी उनके साथ है . उन्होंने कहा कि इस धरती पर सबसे पहले बसने वाला कोई व्यक्ति या समाज है तो वो आदिवासी समाज है . लेकिन आदिवासी को एक सोची समझी साजिश के तहत वनवासी कहने की राजनीति होती है . मंत्री शिल्पी नेहा तिर्की ने आगाह करते हुए कहा कि आने वाला समय बेहद ही चुनौतीपूर्ण है . देश में साल 2014 के बाद से संविधान बदलने का षडयंत्र चल रहा है . वही संविधान जो हम सबको जीने – रहने – बोलने – पढ़ने – लिखने की आजादी देता है . लेकिन केंद्र में बैठी बीजेपी सरकार लोगों से इस अधिकार को छीनना चाहती है . देश के राष्ट्रपति से लेकर गांव के किसान तक को एक वोट देने का संवैधानिक अधिकार है . आज बिहार में 65 लाख लोगों से उनका वोट देने का अधिकार छीन लिया गया . जिसमें आदिवासी – दलित – पिछड़ा और दूसरे राज्य जा कर रोजगार करने वाले लोगों के नाम शामिल है . ये समय संविधान खामोश रहने का नहीं , बल्कि संविधान की हकमारी के खिलाफ आवाज बुलंद करने का है .

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