सचिवालय का सच : दुलरुओं पर मंडराता ‘सोमवार’ का साया

जीतेंद्र कुमार

रांची के सचिवालय में इस समय चर्चाओं का केंद्र कोई नई योजना या कानून नहीं, बल्कि स्थानांतरण की गूंज है। 12 साल से अधिक समय से कुर्सी पर जमे 221 प्रशाखा पदाधिकारियों का मामला अब निर्णायक मोड़ पर है।

जुलाई में इनके तबादले का आदेश जारी हुआ था। 18 अगस्त तक विरमित होने की समय-सीमा तय हुई, लेकिन मानसून सत्र के चलते यह प्रक्रिया अटक गई। 28 अगस्त को विधानसभा का सत्र स्थगित होते ही शीर्ष स्तर से आदेश निकला—एक सितंबर से सभी 221 प्रशाखा पदाधिकारियों को स्वतः विरमित माना जाएगा।

यह फरमान सचिवालय की दीवारों से टकराकर हर कोने में गूंज रहा है। विभागीय फाइलों से ज्यादा चर्चा इस बात की है कि क्या दुलरुए अधिकारी इस बार भी अपनी पकड़ बनाए रखेंगे।

कौन हैं ‘दुलरुए’?

सचिवालय में सब जानते हैं कि किन अधिकारियों को दुलरुआ कहा जाता है—वे जिन्हें वर्षों से संरक्षण मिला, जिनकी फाइलें रुकती नहीं, और जिनके लिए बड़े-बड़े पदाधिकारी डीओ लेटर तक लिख चुके हैं। वित्त विभाग के दो ऐसे दुलरुए 2013 से अब तक उसी जगह जमे हुए हैं।

सोमवार की प्रतीक्षा

अब नजरें टिकी हैं सोमवार पर। सवाल यही है कि—

क्या दुलरुए इस बार भी विरमित होने से बच जाएंगे?

या फिर उन्हें भी मजबूरन नई कुर्सी संभालनी पड़ेगी?

और यदि गए, तो नए विभाग में उनका असर कितना चलेगा?

सचिवालय का क्रिकेट मैदान

सचिवालय के गलियारे इन दिनों मानो क्रिकेट पिच में बदल गए हैं। अफसरों की गुगली और बड़े साहब का बाउंसर—सब पर पैनी निगाहें हैं। चर्चा है कि इस बार कार्मिक विभाग के बड़े साहब का रुख सख्त है। ऐसे में कई खिलाड़ी बोल्ड होने तय माने जा रहे हैं। दिलचस्प यह है कि नेताजी तक फोन करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे, क्योंकि इस बार साहब के तेवर अलग हैं। सचिवालय की असली तस्वीर अब सोमवार को ही साफ होगी। यह दिन तय करेगा कि पुराने खेल जारी रहते हैं या नई पारदर्शिता की शुरुआत होती है। फिलहाल, सचिवालय के हर गलियारे में यही सवाल गूंज रहा है दुलरुए जाएंगे या फिर से टिक जाएंगे?

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