झारखंड के ग्रामीण इलाकों में ‘ग्राम पंचायत हेल्प डेस्क’ की पहल

शासन से जुड़ रहा है समुदाय, महिलाओं को मिल रहा सशक्तिकरण

जमशेदपुर । झारखंड के दूरस्थ गांवों में अब लोग शासन से सीधे जुड़ रहे हैं। कारण है—‘ग्राम पंचायत हेल्प डेस्क (GPHC)’, जो स्थानीय समुदायों को उनके अधिकारों और सरकारी योजनाओं की जानकारी देने का एक अभिनव माध्यम बन रहा है।

फिलहाल यह मॉडल पूर्वी सिंहभूम जिले के पटमदा, बोराम और गुरबंधा ब्लॉकों में लागू है, जहां अब तक 35 जीपीएचडी सक्रिय हैं। यह पहल जनजातीय कार्य मंत्रालय की ‘आदि कर्मयोगी अभियान’ से भी मेल खाती है।

हेल्प डेस्क का संचालन टैगोर सोसाइटी फॉर रूरल डेवलपमेंट (TSRD) कर रही है, जिसमें ‘कॉमन ग्राउंड इनीशिएटिव’ और ‘प्रदान’ जैसे संगठनों का तकनीकी सहयोग है। यहां ग्रामीणों को मनरेगा, पेंशन, आवास जैसी योजनाओं की जानकारी और मदद उपलब्ध कराई जाती है।

महिलाओं की अगुवाई

इन डेस्कों को प्रशिक्षित महिला सहायिकाएं चला रही हैं। TSRD के संयुक्त सचिव नंदलाल बख्शी बताते हैं—
“हर डेस्क पर स्थानीय बोली बोलने वाली सहायक तैनात होती है, जो दस्तावेज़, जॉब कार्ड या पेंशन के कार्य में ग्रामीणों की मदद करती है।”

सहायिका मंदा देवी कहती हैं,
“अब महिलाएं सीधे हमारे पास आती हैं, सवाल पूछती हैं और आत्मविश्वास के साथ लौटती हैं।”

सरकार की योजना और रोजगार का अवसर

जनवरी 2024 में राज्य सरकार ने आदेश जारी कर सभी 4,246 पंचायतों में जीपीएचडी स्थापित करना अनिवार्य कर दिया है।
प्रत्येक सहायक को ₹2,500 मानदेय और कार्य के आधार पर ₹1,200–2,000 प्रोत्साहन राशि भी दी जाती है। इससे ग्रामीण युवाओं को रोजगार का अवसर भी मिल रहा है।

चुनौतियां भी मौजूद

हालांकि इस पहल के सामने चुनौतियां भी हैं—

कर्मचारियों की कमी

सीमित डिजिटल साक्षरता

समन्वय की दिक्कतें

लेकिन ‘प्रदान’ के सहयोग से प्रशिक्षण मॉड्यूल, रिकॉर्ड कीपिंग और शिकायत निवारण व्यवस्था विकसित होने से इसका असर दिख रहा है।

भरोसे की नई कड़ी

आज जीपीएचडी न केवल फॉर्म भरने का काम कर रही है, बल्कि संविधान की प्रस्तावना पढ़वाने, सरकारी योजनाओं की जानकारी देने और लोगों को अपनी बात कहने का साहस भी दे रही है।

खंड विकास अधिकारी शशि डुंगडुंग के अनुसार,
“यह पहल स्थानीय शासन को संवेदनशील, पारदर्शी और सहभागी बनाने में सहायक साबित हो रही है।”

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