झारखंड में पेसा नियमावली पर गहराया संकट, कांग्रेस प्रभारी के. राजू के सुझाव से बढ़ी मुश्किलें

रांची। पेसा एक्ट (PESA Act) के आलोक में नियमावली बनाने की प्रक्रिया झारखंड में एक बार फिर उलझ गई है। प्रदेश कांग्रेस प्रभारी के. राजू द्वारा दिए गए लिखित सुझावों ने सरकार की परेशानी और बढ़ा दी है। उनके प्रस्ताव के अनुसार, राज्य की हर ग्राम सभा को प्रतिवर्ष दो-दो लाख रुपये देने का प्रावधान किया जाए।

राज्य में करीब 20-22 हजार ग्राम सभाओं के गठन का अनुमान है। यदि प्रत्येक ग्राम सभा को दो लाख रुपये दिए जाते हैं, तो इस मद में 400 करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ पड़ेगा। ऐसे में पहले से चल रही योजनाओं — मंईयां सम्मान, बिजली बिल माफी, कृषि ऋण माफी — को जारी रखते हुए इस भारी राशि की व्यवस्था करना सरकार के लिए चुनौती बन गया है।

विभागों की चुप्पी और हाईकोर्ट की सुनवाई

जानकारी के अनुसार, पेसा नियमावली के मसौदे को लेकर कई विभाग अब तक अपना मंतव्य नहीं दे पाए हैं। स्वास्थ्य, शिक्षा, पर्यटन और ग्रामीण विकास विभागों ने अपना मत दर्ज कराया है, लेकिन खनन, उद्योग, कृषि, वन-पर्यावरण, उत्पाद, पेयजल, जल संसाधन, गृह कारा, महिला एवं बाल विकास जैसे अहम विभागों की फाइलें अब भी लंबित हैं।

इसी बीच, पेसा नियमावली गठन को लेकर दायर जनहित याचिका पर 9 सितंबर को झारखंड हाईकोर्ट में सुनवाई होनी है। अनुमान है कि अदालत इस बार सरकार से कड़ा जवाब तलब कर सकती है।

कोरम को लेकर विवाद

कांग्रेस ने नियमावली को और कठोर बनाने की मांग की है। केंद्र सरकार के मॉडल नियमावली और अन्य आठ राज्यों में ग्राम सभा की बैठक के लिए एक तिहाई सदस्यों की उपस्थिति को अनिवार्य किया गया है। लेकिन कांग्रेस चाहती है कि झारखंड में कोरम की शर्त आधे सदस्यों की अनिवार्य उपस्थिति के साथ तय की जाए।

आगे की प्रक्रिया

नियमावली लागू होने के बाद भी कई प्रक्रियाएं बाकी रहेंगी। जिलों के उपायुक्तों (DC) को ग्राम सभाओं का गठन और अधिसूचना जारी करने का अधिकार दिया जाएगा। इसके तहत डीसी ग्राम सभा के गठन पर आपत्तियां मंगवाएंगे, उनका निबटारा करेंगे और यह तय करेंगे कि किस पंचायत में कितनी ग्राम सभाएं होंगी तथा उनका दायरा क्या होगा।

पेसा नियमावली में झारखंड की देरी

देश के दस राज्यों में संविधान की पांचवीं अनुसूची के तहत पेसा कानून लागू है। इनमें से आठ राज्यों — महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, गुजरात, राजस्थान आदि — ने नियमावली का गठन कर लिया है। लेकिन झारखंड और ओडिशा अभी भी पीछे हैं।

विशेषज्ञ मानते हैं कि यदि सरकार ने जल्द स्पष्ट नीति नहीं बनाई, तो पेसा कानून के क्रियान्वयन में और देरी होगी और आदिवासी समुदायों को इसका वास्तविक लाभ मिलने में अड़चनें खड़ी होंगी।

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