महिला अधिकारों को लेकर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला: आदिवासी महिलाएं भी बनेंगी संपत्ति की हकदार

???? नई दिल्ली | विशेष संवाददाता
महिलाओं के अधिकारों को लेकर देश की सबसे बड़ी अदालत ने एक ऐतिहासिक और संवैधानिक निर्णय सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि आदिवासी समुदायों में भी महिलाओं को पैतृक संपत्ति में बराबर का अधिकार मिलेगा। यह फैसला भारतीय न्याय व्यवस्था में एक बड़ा मील का पत्थर माना जा रहा है।

“महिलाओं को उत्तराधिकार से वंचित करना भेदभावपूर्ण” – सुप्रीम कोर्ट

न्यायमूर्ति संजय करोल और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने एक महत्वपूर्ण टिप्पणी में कहा –
“महिलाओं को उत्तराधिकार से वंचित करना संविधान के अनुच्छेद 15 का उल्लंघन है। यह लैंगिक भेदभाव को बढ़ावा देता है और असंवैधानिक है।”
हालांकि यह माना गया कि हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम अनुसूचित जनजातियों पर लागू नहीं होता, पर इसका मतलब यह नहीं कि महिलाओं को पूरी तरह हक से वंचित कर दिया जाए।

क्या है मामला?

यह फैसला झारखंड के धैया नामक एक आदिवासी महिला से जुड़ा हुआ है। उनके कानूनी उत्तराधिकारी ने अपने नाना की संपत्ति में हिस्सा मांगा था। परिवार के पुरुष सदस्यों ने यह कहकर विरोध किया कि आदिवासी परंपरा के अनुसार महिलाओं को संपत्ति में हिस्सा नहीं दिया जाता। लेकिन कोर्ट ने इस दलील को खारिज कर दिया।

“कानून की तरह रीति-रिवाज भी समय के साथ बदलने चाहिए” – कोर्ट

फैसले में कहा गया कि

“यदि कोई परंपरा महिलाओं को हक से वंचित करती है, तो उसे भी विकसित होना होगा। रीति-रिवाजों के पीछे छिपकर महिलाओं को उनके अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता।”

कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि

“किसी भी निषेधात्मक प्रथा के अभाव में महिला या उसके उत्तराधिकारी को संपत्ति में हक न देना केवल लैंगिक भेदभाव को बढ़ावा देता है, जो कानूनन गलत है।”

महिलाओं के हक में ऐतिहासिक फैसला

इस फैसले से यह स्पष्ट हो गया है कि सिर्फ पुरुष उत्तराधिकारी ही नहीं, बल्कि महिलाएं और उनके उत्तराधिकारी भी आदिवासी परिवारों में संपत्ति के हकदार होंगे, जब तक कि कोई कानूनी या सामाजिक प्रथा इसका ठोस प्रमाण न दे।

अनुच्छेद 15 (1) का सख्त पालन जरूरी: SC

अदालत ने जोर देकर कहा कि संविधान का अनुच्छेद 15(1) यह सुनिश्चित करता है कि किसी भी व्यक्ति के साथ धर्म, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता।
इसलिए महिलाओं को संपत्ति से बाहर करना न सिर्फ असंवैधानिक है, बल्कि समाज में भेदभाव की जड़ें और गहरी करता है।

Bishwjit Tiwari
Author: Bishwjit Tiwari

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