रांची : मेरे बेटे कृष अंसारी को लेकर जो बातें कुछ मीडिया माध्यमों और राजनीतिक मानसिकता के लोग फैला रहे हैं, वो पूरी तरह निराधार, भ्रामक और दुर्भावनापूर्ण हैं।
कृष रिम्स किसी निरीक्षण या नेतागिरी के लिए नहीं गया था। वह तो अपने शिक्षक श्री आदित्य कुमार झा जी के पिता जी को देखने गया था, जो रिम्स में भर्ती हैं। इसी क्रम में बीती रात कुछ आदिवासी परिवार हमारे आवास पर सहायता के लिए पहुंचे, जो रिम्स में अपने परिजन के इलाज को लेकर बेहद परेशान थे। उनके आग्रह पर ही कृष मानवीय आधार पर वहां गया – किसी की तकलीफ कम करने की कोशिश करने।
साथ ही, संयोग से एक वरिष्ठ पत्रकार बंधु के परिजन भी रिम्स में भर्ती थे, जिन्हें भी सहायता की आवश्यकता थी। कृष ने इंसानियत और संवेदनशीलता के भाव से, यथासंभव मदद की – बस इतना ही।
लेकिन आज जिस तरह इस घटना को तोड़-मरोड़ कर, राजनीति का रंग चढ़ाकर, बिना तथ्यों के प्रस्तुत किया जा रहा है – वह बेहद दुखद और चिंताजनक है।
कृष एक पढ़ा-लिखा, संवेदनशील और होनहार छात्र है। वह अभी छुट्टियों में रांची आया हुआ है। सेवा की भावना उसके भीतर सहज रूप से मौजूद है – आखिर वह पूर्व सांसद श्री फुरकान अंसारी का पोता है, जिन्होंने झारखंड अलग राज्य के आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। ऐसे परिवार में जन्मे युवा में जनभावना और सेवा का स्वाभाविक संस्कार होना कोई अचरज नहीं।
लेकिन क्या अब मदद करना भी अपराध है?
कृष बार-बार मुझसे एक ही सवाल कर रहा है –
“पापा, क्या लोगों की मदद करना गुनाह है? क्या किसी की तकलीफ देखकर मदद करना नेतागिरी कहलाता है?”*
यह सवाल मुझे भीतर तक तोड़ देता है।
मेरा बेटा न तो किसी किसान को गाड़ी से कुचलता है,
न ही किसी के मुंह में पेशाब करता है,
और न ही सत्ता के नशे में इंसानियत भूल जाता है।
उसने तो बस एक बीमार को देखा… और मदद की।
क्या अब संवेदनशीलता और करुणा भी अपराध मानी जाएगी?
मैं इस सोच से बेहद व्यथित हूं और सोचने को मजबूर हूं कि “आखिर हमारा समाज किस दिशा में जा रहा है?”*l
क्या हर युवा हाथ जो मदद के लिए उठता है,
अब राजनीति की काली स्याही से रंग दिया जाएगा?
यह हाय-तौबा, यह मानसिकता, समाज के लिए घातक है।
मैं आप सभी से हाथ जोड़कर निवेदन करता हूं –
कृपया सच्चाई को समझें। राजनीति के चश्मे को उतारें।
यह एक युवा की संवेदनशीलता और सेवा-भावना का अपमान है। कृष का मन टूटा हुआ है, लेकिन उसके इरादे मजबूत हैं।