पाकुड़िया (संथाल हूल एक्सप्रेस)।/ संतोष कुमार साहा
कठिन परिस्थितियों में भी हौसला नहीं हारीं एलिजाबेथ आज जैविक खेती के जरिए न सिर्फ आत्मनिर्भर बनी हैं, बल्कि क्षेत्र की अन्य महिलाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत भी बन चुकी हैं। पाकुड़िया प्रखंड अंतर्गत बसंतपुर गांव की रहनेवाली एलिजाबेथ एक साधारण किसान परिवार से आती हैं। उनका परिवार पूरी तरह खेतीबाड़ी और पशुपालन पर निर्भर है।
पहले वे केवल 5-6 कट्ठा जमीन में बैंगन की खेती करती थीं, जिससे आमदनी बेहद सीमित होती थी। वर्ष 2014 में एलिजाबेथ झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रमोशन सोसाइटी (JSLPS) के जियोन मार्शल आजीविका सखी मंडल से जुड़ीं। इसके बाद उन्होंने जैविक खेती और पशुपालन का प्रशिक्षण प्राप्त किया। फिर दीदी चास हाट फार्मर प्रोड्यूसर कंपनी लिमिटेड की सदस्य बनीं, जिसमें उन्होंने 1,000 रुपये अंशपूंजी और 50 रुपये शुल्क के रूप में जमा किया।
जैविक खेती से आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ाया कदम—
सखी मंडल से 1 लाख रुपये का ऋण लेकर एलिजाबेथ ने 100 डिसमिल जमीन पर विभिन्न प्रकार की सब्जियों की खेती शुरू की। खास बात यह है कि वे पूरी तरह से जैविक विधि से खेती करती हैं, जिससे रासायनिक खाद पर खर्च नहीं करना पड़ता। वे बैंगन की फसल पाकुड़िया हटिया और आस-पास के बाजारों में 20-30 रुपये प्रति किलो की दर से बेचती हैं, जिससे उन्हें अच्छी मासिक आमदनी हो रही है।
कमाई बढ़ी, सामाजिक पहचान भी मिली—-
एलिजाबेथ अब शादी-ब्याह में पंडाल निर्माण का कार्य भी करती हैं, जिससे उनकी कमाई में और इजाफा हुआ है। उन्होंने अपने बच्चों का दाखिला अच्छे स्कूल में कराया है और उन्हें गुणवत्तापूर्ण शिक्षा दिला रही हैं।
गांव की महिलाएं ले रहीं प्रेरणा—-
एलिजाबेथ की मेहनत और सफलता को देखकर आस-पास की महिलाएं भी जैविक खेती की ओर अग्रसर हो रही हैं। वे अब क्षेत्र में आजीविका की एक सफल और प्रेरणादायक मिसाल बन चुकी हैं।