झारसुगुड़ा/रांची: झारखंड के अकादमिक जगत के लिए एक गौरवशाली पल तब आया जब राज्य के एक मेधावी शिक्षाविद को राष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित किया गया। रांची विश्वविद्यालय से संबद्ध जे.एन. कॉलेज, धुर्वा के कुंड़ुख़ विभाग के प्राध्यापक डॉ. अरुण अमित तिग्गा को “बेस्ट पीएचडी अवार्ड 2025” से सम्मानित किया गया।
यह प्रतिष्ठित पुरस्कार कुंड़ुख़ लिटरेरी सोसायटी ऑफ इंडिया (नई दिल्ली) द्वारा झारसुगुड़ा, उड़ीसा में आयोजित 18वें राष्ट्रीय कुंड़ुख़ सम्मेलन में प्रदान किया गया। यह सम्मान कुंड़ुख़ भाषा और लोकसंस्कृति के क्षेत्र में डॉ. तिग्गा के उल्लेखनीय शोध एवं योगदान के लिए दिया गया है। उनके शोध ने कुंड़ुख़ समुदाय की लोकपरंपराओं, मौखिक साहित्य और सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
तीन दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन
24 से 26 अक्टूबर तक आयोजित इस तीन दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन कुंड़ुख़ लिटरेरी सोसायटी ऑफ इंडिया, नई दिल्ली और उसके ओडिशा चैप्टर के संयुक्त तत्वावधान में किया गया। इस आयोजन में झारखंड, ओडिशा, छत्तीसगढ़, असम और पश्चिम बंगाल सहित कई राज्यों के 56 से अधिक प्रतिनिधियों ने भाग लिया। सम्मेलन के दौरान कुंड़ुख़ भाषा, साहित्य, संस्कृति और आदिवासी समाज की समकालीन चुनौतियों पर विस्तृत चर्चा हुई।
युवा विद्वान को मिली श्रद्धांजलि
सम्मेलन के मुख्य अतिथियों ने डॉ. तिग्गा को बधाई देते हुए कहा, “डॉ. तिग्गा जैसे युवा विद्वान कुंड़ुख़ भाषा के संवर्धन और नई पीढ़ी में गर्व की भावना जगाने में सेतु का कार्य कर रहे हैं।”
झारखंड के प्रतिनिधियों ने दिखाई मजबूत उपस्थिति
इस ऐतिहासिक सम्मेलन में झारखंड से बड़ी संख्या में शिक्षाविद्, शोधार्थी और विद्यार्थी शामिल हुए। प्रमुख प्रतिनिधियों में प्रो. धीरज उरांव (चैप्टर चीफ, के.सी.बी. कॉलेज बेड़ो), डॉ. बन्दे खलखो (विभागाध्यक्ष, रांची विश्वविद्यालय), प्रो. विकास उरांव (डोरंडा कॉलेज), प्रो. ब्लासियुस पन्ना (बी.एस. कॉलेज, लोहरदगा), प्रो. प्रेमचंद उरांव (के.वी. कॉलेज, गुमला) और प्रो. सुषमा कुजूर (मांडर कॉलेज) शामिल रहे। रांची विश्वविद्यालय के कई शोधार्थियों ने भी इस कार्यक्रम में सक्रिय भागीदारी निभाई।
राज्य के लिए गर्व का क्षण
डॉ. तिग्गा की यह उपलब्धि न केवल उनके व्यक्तिगत परिश्रम का प्रतीक है, बल्कि झारखंड की समृद्ध आदिवासी बौद्धिक परंपरा और भाषाई विरासत को भी रेखांकित करती है। रांची विश्वविद्यालय के कुलपति एवं शिक्षक समुदाय ने इस उपलब्धि पर खुशी जताते हुए इसे पूरे विश्वविद्यिद्यालय परिवार और झारखंड राज्य के लिए गर्व का विषय बताया।
समापन सत्र में उभरा यह संदेश
सम्मेलन के समापन सत्र में सभी वक्ताओं ने इस बात पर जोर दिया कि कुंड़ुख़ भाषा के संरक्षण और विकास के लिए इसे आधुनिक शिक्षा और तकनीक से जोड़ना अत्यंत आवश्यक है। यह तभी संभव है जब नई पीढ़ी अपनी मातृभाषा को बोलने, लिखने और उस पर शोध करने में गर्व का अनुभव करे।