संथाल हूल एक्सप्रेस की ओर से भारत की वीरांगना ‘दुर्गा भाभी’ को श्रद्धांजलि
भारत की स्वतंत्रता संग्राम में पुरुष क्रांतिकारियों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर संघर्ष करने वाली वीरांगना दुर्गावती देवी को आज उनकी पुण्यतिथि पर पूरे देश में श्रद्धापूर्वक याद किया जा रहा है।
संथाल हूल एक्सप्रेस (हिंदी दैनिक) ने उन्हें नमन करते हुए कहा —
“भगत सिंह और आज़ाद जैसे क्रांतिकारियों के साथ रहने वाली दुर्गावती देवी को उनकी पुण्यतिथि पर शत-शत नमन।”
दुर्गावती देवी: साहस और समर्पण की मिसाल
दुर्गावती देवी, जिन्हें प्रेम और सम्मान से “दुर्गा भाभी” कहा जाता था, स्वतंत्रता आंदोलन के उन गिने-चुने महिला चेहरों में से थीं जिन्होंने हथियार उठाकर ब्रिटिश साम्राज्य को चुनौती दी।
वे भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव और चंद्रशेखर आज़ाद जैसी क्रांतिकारी टोली की अभिन्न सहयोगी थीं।
1928 में जब लाहौर में सांडर्स हत्याकांड के बाद भगत सिंह और राजगुरु फरार हुए, तो दुर्गावती देवी ने अपनी सूझबूझ से उन्हें ब्रिटिश पुलिस की आँखों के सामने से सुरक्षित निकलने में मदद की। उन्होंने भगत सिंह के साथ ट्रेन में यात्रा की और स्वयं को उनकी पत्नी और अपने बेटे को उनके पुत्र के रूप में प्रस्तुत किया — यह साहसिक घटना भारतीय क्रांति के इतिहास में अमर है।
महिला सशक्तिकरण की प्रतीक
दुर्गावती देवी उस युग में महिलाओं की भूमिका को नई परिभाषा देने वाली नायिका थीं। उन्होंने सामाजिक बंधनों से ऊपर उठकर स्वतंत्रता को सर्वोच्च मान्यता दी।
उन्होंने क्रांतिकारी संगठन “हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (HSRA)” के लिए काम किया और अपने घर को कई बार क्रांतिकारियों का सुरक्षित ठिकाना बनाया।
संथाल हूल एक्सप्रेस ने अपने संपादकीय में लिखा —
“दुर्गा भाभी केवल एक क्रांतिकारी नहीं, बल्कि उस युग की महिला चेतना की प्रतीक थीं। उन्होंने दिखाया कि आज़ादी की लड़ाई केवल पुरुषों की नहीं, बल्कि हर भारतीय की थी।”
दुर्गा भाभी का योगदान आज भी प्रेरणा है
स्वतंत्रता के बाद भी दुर्गावती देवी ने समाज सेवा का कार्य जारी रखा। वे शिक्षा और महिलाओं के अधिकारों के लिए कार्य करती रहीं।
उनका जीवन हर उस भारतीय के लिए प्रेरणा है जो देश, समाज और समानता के लिए कार्य करना चाहता है।
????️ संथाल हूल एक्सप्रेस का श्रद्धांजलि संदेश
“दुर्गा भाभी जैसी वीर महिलाओं ने भारत की आज़ादी की नींव अपने त्याग और साहस से रखी। उनकी स्मृति हमें यह सिखाती है कि राष्ट्र निर्माण में नारी शक्ति की भूमिका सबसे मजबूत स्तंभ है।”
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