संथाल हूल एक्सप्रेस (हिंदी दैनिक) का विशेष आलेख
साहिबगंज, 8 अक्टूबर:
आधुनिक हिंदी कहानी और उपन्यास के पितामह, यथार्थवाद के पुरोधा और आम जनजीवन के सशक्त चित्रकार मुंशी प्रेमचंद जी की पुण्यतिथि पर आज पूरे देश में उन्हें श्रद्धा और सम्मान के साथ याद किया जा रहा है।
संथाल हूल एक्सप्रेस (हिंदी दैनिक) ने इस अवसर पर श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा —
“प्रेमचंद जी ने साहित्य को जनजीवन की धड़कनों से जोड़ा। उनका लेखन समाज की आत्मा की सच्ची अभिव्यक्ति था।”
किसान, मजदूर और आमजन के लेखक
मुंशी प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई 1880 को लमही (वाराणसी, उत्तर प्रदेश) में हुआ था।
उनकी रचनाएँ — “गोदान”, “गबन”, “निर्मला”, “कफन”, “पूस की रात”, “शतरंज के खिलाड़ी” — भारतीय समाज के विविध पहलुओं को इतनी गहराई से प्रस्तुत करती हैं कि आज भी वे उतनी ही प्रासंगिक लगती हैं।
उन्होंने साहित्य के माध्यम से गरीबी, अन्याय, स्त्री-शोषण और वर्ग-संघर्ष जैसे मुद्दों को सामने लाया।
✍️ कलम जिसने समाज का आईना दिखाया
प्रेमचंद जी का लेखन केवल मनोरंजन का माध्यम नहीं था, बल्कि समाज सुधार का उपकरण था।
उन्होंने कहा था —
“साहित्य समाज का दर्पण है।”
उनकी रचनाओं ने आम आदमी की पीड़ा को शब्द दिए और साहित्य को जनसरोकार का मंच बनाया।
???? गाँव, समाज और नैतिकता के चित्रकार
प्रेमचंद का साहित्य भारतीय ग्रामीण जीवन का जीवंत दस्तावेज़ है।
उनके पात्र — होरी, धनिया, घीसू, माधव, जालपा — केवल कहानियों के पात्र नहीं, बल्कि भारत की आत्मा के प्रतीक हैं।
उन्होंने दिखाया कि सच्चा साहित्य वही है जो समाज के सुख-दुःख, संघर्ष और नैतिक द्वंद्वों को ईमानदारी से उजागर करे।
???? संथाल हूल एक्सप्रेस का संपादकीय संदेश
“मुंशी प्रेमचंद केवल एक लेखक नहीं, बल्कि विचारधारा हैं — जो हर युग में सच बोलने, अन्याय से लड़ने और समाज को दिशा देने की प्रेरणा देती है।”
आज उनकी पुण्यतिथि पर साहित्यिक संस्थाओं, विद्यालयों और सामाजिक संगठनों द्वारा भाषण, वाचन और श्रद्धांजलि सभाओं का आयोजन किया जा रहा है।
उनकी विरासत हमें यह सिखाती है कि कलम अगर ईमानदार हो, तो वह समाज में परिवर्तन की सबसे बड़ी ताकत बन सकती है।