पलामू पुलिस की नई पहल: नक्सली कमांडरों के घर गूंजेंगे ढोल-नगाड़े, जनता को दिखेगा असली चेहरा

पलामू। नक्सलप्रभावित इलाकों में पलामू पुलिस ने एक अनोखी जनसंचार रणनीति अपनाने का फैसला किया है अब गांव-गांव जाकर ढोल-नगाड़े, बैनर-पोस्टर और विजुअल टेक्स्ट के माध्यम से बड़े नक्सली कमांडरों के अपराधों और उनके कृत्यों का सकल हिसाब जनता के सामने रखा जाएगा। पुलिस का उद्देश्य ग्रामीणों को नक्सलियों के असली चरित्र से अवगत कराना और उन्हें मुख्यधारा से जोड़ने के लिए प्रेरित करना है। पुलिस अधिकारियों ने कहा कि अभियान के तहत टीमें लक्षित कमांडरों के घरेलू इलाकों में जनसभा- शैली का प्रचार-प्रसार करेंगी, जहां ढोल-नगाड़े के साथ स्थानीय लोगों को नक्सलियों द्वारा किए गए कृत्यों का विवरण दिया जाएगा। अधिकारियों का कहना है कि डर के कारण अक्सर ग्रामीण खुलकर सामने नहीं आते; सार्वजनिक रूप से उनके बारे में जानकारी देने से डर और आभासी समर्थन कम होगा और लोग पुलिस का सहयोग करने में आगे आएंगे।

पुलिस ने बताया कि अभियान में कम से कम 10 बड़े नक्सली कमांडर खास निशाने पर हैं। जिनके नाम सामने आए हैं, उनमें भाकपा-माओवादी के रीजनल कमांडर नितेश यादव, रविंद्र गंझू, जोनल कमांडर मृत्युंजय भुइयां, मनोहर गंझू, संजय गोदराम, ठेगन मियां, टीएसपीसी के शशिकांत गंझू और नगीना शामिल बताए गए हैं। अधिकारियों ने यह भी कहा कि अभियान का एक पक्ष पुनर्वास के लाभों पर प्रकाश डालना होगा मुख्यधारा में लौटने वाले नक्सलियों को सरकार की पुनर्वास योजनाओं और कल्याणकारी कार्यक्रमों का लाभ दिलाने का आश्वासन दिया जाएगा। पुलिस का तर्क है कि बदलाव और संवाद हिंसा के विकल्प के रूप में प्रस्तुत किए जाने चाहिए, न कि सिर्फ दण्डात्मक उपायों के रूप में।
हालांकि इस रणनीति की प्रभावशीलता और संवेदनशीलता पर स्थानीय स्तर पर मिश्रित प्रतिक्रियाएँ मिल रही हैं। कुछ ग्रामीण स्रोतों ने कहा कि खुलकर जानकारी मिलने से वे नक्सलियों के प्रभाव से बाहर आने के लिए प्रेरित होंगे, जबकि सुरक्षा विशेषज्ञों और अधिकार समूहों ने चेतावनी दी है कि ऐसी गतिविधियाँ पारदर्शी और कानूनी ढांचे के भीतर रहकर ही संचालित होनी चाहिए ताकि किसी प्रकार की आत्मरक्षा का उल्लंघन या उत्तेजना न हो।
न्यायिक और मानवाधिकार संबंधी दावों पर जांच और सहयोग सुनिश्चित करने के महत्व को भी पुलिस ने स्वीकारा है। विभाग ने कहा है कि किसी भी सार्वजनिक कार्यक्रम के दौरान शांति और कानून-व्यवस्था बनाए रखने का पूरा प्रबंधन किया जाएगा और कोई भी प्रचार सामग्री तथ्यों पर आधारित और विनियमित होगी। पुलिस उपायों के व्यापक प्रभाव का आकलन अगले कुछ हफ्तों में किया जाएगा। अधिकारियों का कहना है कि जब तक जनता का भरोसा और साहस दोनों मजबूत नहीं होंगे, तब तक नक्सली खतरा शेष रहेगा, इसलिए जनभागीदारी और सूचनात्मक अभियानों को वे अहम मानते हैं।

Bishwjit Tiwari
Author: Bishwjit Tiwari

Leave a Comment