आचार्य विनोबा भावे की जयंती पर संगोष्ठी आयोजित

विनोबा का भूदान कार्यक्रम आज भी लोगों को करता है विस्मित : डॉ मृत्युंजय प्रसाद

हजारीबाग में विनोबा को मिली थी दान में सर्वाधिक भूमि : डॉ प्रमोद कुमार

संथाल हूल एक्सप्रेस संवाददाता

हजारीबाग : विनोबा भावे विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान विभाग में गुरुवार को आचार्य विनोबा भावे की 130वीं जयंती के अवसर पर एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए विभागाध्यक्ष डॉ सुकल्याण मोइत्रा ने बताया कि हमारा सौभाग्य है कि विनोबा भावे जैसे संत के नाम पर हमारे विश्वविद्यालय की स्थापना हुई है। उन्होंने बताया कि गांधी जी के बाद स्वतंत्र भारत को दिशा देने में विनोबा भावे का महत्वपूर्ण योगदान था। विनोबा ने 12 वर्ष 13 महीने तक भारत में पैदल भ्रमण किया था तथा भारत के हर धड़कन से वह परिचित थे। बतौर विशिष्ट वक्ता कार्यक्रम को संबोधित करते हुए डॉ प्रमोद कुमार ने आचार्य विनोबा भावे के साथ हजारीबाग के संबंधों को बताया। उन्होंने बताया की विनोबा पहली बार 24 मार्च 1952 को और उसके बाद 12 जुलाई 1953 को हजारीबाग आए थे। हजारीबाग के लिए यह अत्यंत गर्व का विषय है कि पूरे भारत में विनोबा भावे को भूदान के तहत सबसे अधिक भूमि यही के रामगढ़ स्टेट के राजा बहादुर कामाख्या नारायण सिंह से प्राप्त हुआ था। यहां के राजा ने विनोबा को चार लाख एकड़ भूमि दान में दिया था। डॉ प्रमोद ने बताया कि आचार्य विनोबा भावे ने जय जगत का नारा दिया था जिससे यह स्पष्ट होता है कि वह विश्व कल्याण के उपासक थे। मुख्य वक्ता के रूप में कार्यक्रम को संबोधित करते हुए शिक्षा शास्त्र विभाग के प्राध्यापक डॉ मृत्युंजय प्रसाद ने बताया की विनोबा भावे महात्मा गांधी के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी थे। उन्होंने विनोबा के भूदान तथा ग्रामदान जैसे कार्यक्रमों की जानकारी दी। विनोवा की बात सभी भूमि गोपाल का का विश्लेषण करते हुए उन्होंने बताया कि विनोबा कहते थे कि व्यक्ति अपने को किसी भूमि का मालिक नहीं समझे। और विश्व के लोग आश्चर्यचकित तब हुए जब लोग विनोबा की इस बात पर अमल करने लगे। विनोबा के पवनार आश्रम के विषय में बताते हुए डॉ मृत्युंजय ने विनोबा की पुस्तक नारी महिमा और गीताई की भी चर्चा की। कार्यक्रम का संचालन विभागीय प्राध्यापक डॉ अजय बहादुर सिंह ने किया। कार्यक्रम में विभाग के शोधार्थी एवं तृतीय समसत्र के विद्यार्थियों ने भाग लिया।

Bishwjit Tiwari
Author: Bishwjit Tiwari

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