देवघर से अतुल कुमार गौतम की रिपोर्ट :-
देवघर में एक बार फिर राजनीति और प्रशासनिक फैसलों की अदृश्य डोरें आमने-सामने खड़ी हैं। मामला देवघर के सर्किल ऑफिसर (सीओ) अश्विनी कुमार का है, जिनके प्रति विधायक सुरेश पासवान का ‘अतिप्रेम’ अब सियासी बहस का केंद्र बन गया है। नारायण दास ने सीएम को ट्वीट कर इस ‘मोहजाल’ पर सवाल उठाए हैं, जिससे प्रशासनिक गलियारों में हलचल मच गई है।
राज्य के राजस्व विभाग में चर्चित यह मामला उस समय तूल पकड़ गया, जब आयुक्त ने देवघर सीओ के कार्यों को लेकर कड़ी टिप्पणी की और उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की सिफारिश की। बावजूद इसके, देवघर विधायक सुरेश पासवान के हस्तक्षेप से सीओ का तबादला नहीं हो सका। अब सवाल यह उठ रहा है कि आखिर एक अधिकारी के प्रति इतनी ‘ममता’ क्यों दिखाई जा रही है, जबकि शिकायतें और विभागीय टिप्पणियाँ साफ संकेत दे रही हैं कि कार्यशैली पर गंभीर सवाल हैं।
नारायण दास ने अपने आधिकारिक एक्स (ट्विटर) अकाउंट से मुख्यमंत्री को टैग करते हुए लिखा कि देवघर के सीओ पर कार्रवाई के आदेश के बावजूद उन्हें बचाने की कोशिशें की जा रही हैं। उन्होंने पूछा कि क्या कोई खास वजह है कि देवघर में अफसरों पर विधायकों का असर इतना गहरा है? इस ट्वीट के बाद पूरा मामला मीडिया की सुर्खियों में आ गया।
सूत्र बताते हैं कि देवघर सीओ पिछले डेढ़ वर्ष से अधिक समय से एक ही पद पर जमे हुए हैं। इस अवधि में भूमि विवादों, माप-तौल और राजस्व निस्तारण के कई मामलों में देरी व पक्षपात के आरोप लग चुके हैं। आयुक्त ने अपनी रिपोर्ट में यह भी लिखा कि सीओ के कामकाज पर कई शिकायतें आईं, लेकिन स्थानीय स्तर पर कार्रवाई की बजाय मामले को दबा दिया गया।
वहीं, विधायक सुरेश पासवान का पक्ष कुछ और है। उनका कहना है कि सीओ अश्विनी कुमार क्षेत्र में मेहनती अधिकारी हैं और जनता के बीच उनकी छवि सकारात्मक है। उन्होंने तबादले को रोकने की सिफारिश इसलिए की ताकि विकास कार्य प्रभावित न हों।लेकिन विपक्षी खेमे और स्थानीय नागरिकों का मानना है कि यह तर्क अब पुराने ढर्रे का बहाना है। जनता यह भी पूछ रही है कि क्या एक पद पर वर्षों तक टिके रहना विकास का प्रतीक है या किसी सियासी आश्रय का परिणाम।
राज्य के राजस्व विभाग के निर्देशों के बावजूद अब तक देवघर सीओ को हटाने की प्रक्रिया ठंडी पड़ी है। आयुक्त की रिपोर्ट 13 सितंबर को भेजी गई थी, लेकिन उस पर अमल अब तक नहीं हुआ। सूत्रों के मुताबिक, इस बीच विभाग के कई अन्य सीओ का तबादला किया गया, पर देवघर का नाम सूची से रहस्यमय तरीके से गायब रहा।
अब पूरा मामला मुख्यमंत्री के दरबार तक पहुंच चुका है। नारायण दास के ट्वीट के बाद इस पर सरकार को जवाब देना होगा कि क्या प्रशासनिक अनुशासन की आड़ में राजनीतिक नज़दीकियों को संरक्षण मिल रहा है।
देवघर जैसे संवेदनशील जिले में जहां भूमि विवाद और अतिक्रमण के मामले हमेशा चर्चा में रहते हैं, वहां एक सीओ को लेकर ऐसी राजनीतिक खींचतान प्रशासनिक व्यवस्था पर गंभीर सवाल उठाती है। जनता के बीच यह चर्चा गर्म है कि आखिर देवघर में अफसरों का ‘तबादला नहीं, संरक्षण’ क्यों हो रहा है।
अब देखना यह है कि मुख्यमंत्री इस पूरे विवाद पर क्या कदम उठाते हैं — क्या नारायण दास की शिकायत पर कोई सख्त कार्रवाई होती है, या फिर यह मामला भी बाकी फाइलों की तरह ‘ठंडे बस्ते’ में चला जाएगा। फिलहाल देवघर का माहौल यही कह रहा है कि अफसरशाही पर ‘सियासी साया’ अब सबके सामने खुल चुका है।