“मतभेद ठीक हैं, लेकिन माँ का अपमान नहीं”
अनंत तिवारी
भारतीय समाज में माँ का स्थान सर्वोच्च है। माँ त्याग, धैर्य, संस्कार और निस्वार्थ प्रेम की प्रतिमूर्ति होती है। यही कारण है कि भारतीय संस्कृति में माँ को देवी के समान माना गया है। यह रिश्ता किसी पद, सत्ता या राजनीति से ऊपर है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हमेशा अपनी माँ हीराबेन मोदी के संघर्ष और आशीर्वाद का उल्लेख करते रहे हैं। साधारण परिवार से निकलकर बेटे को देश का सर्वोच्च पद पाते देखना किसी भी माँ के लिए गर्व की बात है। दूसरी ओर, राहुल गांधी की माँ सोनिया गांधी ने भी कठिन परिस्थितियों में परिवार को संभाला और भारतीय राजनीति में अपनी विशिष्ट पहचान बनाई।

लेकिन आज की राजनीति में यही पवित्र रिश्ता निशाने पर लिया जा रहा है। हाल ही में कांग्रेस के मंच से प्रधानमंत्री मोदी की माँ को लेकर अपमानजनक टिप्पणी की गई। इसी तरह, कई बार राहुल गांधी की माँ सोनिया गांधी को भी विरोधियों द्वारा अभद्र भाषा का सामना करना पड़ा। यह स्थिति केवल राजनीति की गिरावट ही नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति और संस्कारों पर भी गहरा आघात है।
लोकतंत्र में मतभेद स्वाभाविक हैं। अलग-अलग विचार और विचारधाराएँ ही लोकतंत्र की ताकत हैं। लेकिन यह मतभेद तब शर्मनाक हो जाते हैं जब इसमें माँ जैसी पवित्र पहचान को घसीटा जाता है। माँ का अपमान दरअसल पूरे समाज का अपमान है।
आज राजनीति को आत्ममंथन करने की ज़रूरत है। नेताओं और कार्यकर्ताओं को यह समझना होगा कि चुनावी लड़ाई विचारों और नीतियों की होनी चाहिए, न कि व्यक्तिगत जीवन और माँ जैसी पवित्र छवि पर आक्षेप लगाने की।
निष्कर्ष साफ है – मतभेद ठीक हैं, लेकिन माँ का अपमान नहीं। माँ तो माँ है, चाहे वह मोदी की हों या राहुल गांधी की। माँ का सम्मान करना ही हमारी असली भारतीय संस्कृति और लोकतंत्र की गरिमा है।
लेखक वर्किंग जर्नलिस्ट ऑफ इंडिया झारखंड इकाई के अध्यक्ष है