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वर्दी-ए-इंसाफ की फिर उठी मांग: सहायक पुलिसकर्मियों की लड़ाई अब मानदेय से भविष्य और अस्तित्व तक

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झारखंड में सहायक पुलिसकर्मियों की स्थिति गंभीर हो गई है, क्योंकि उनकी नौकरी और भविष्य संकट में है। हालहि में सहायक पुलिसकर्मियों ने अपनी मांगों को लेकर धरना दिया, जिसमें उनकी आर्थिक स्थिति और नौकरी की सुरक्षा मुख्य मुद्दे बने। वर्तमान में इन्हें जो मानदेय मिल रहा है, वह केवल 10 से 12 हजार रुपये है, जो उनके परिवार का पालन-पोषण करने के लिए अपर्याप्त है।

साल 2017 में झारखंड के नक्सल प्रभावित जिलों में करीब 2,500 सहायक पुलिसकर्मियों की भर्ती हुई थी, जिन्हें 10,000 रुपये के मानदेय पर तीन साल के कॉन्ट्रैक्ट पर रखा गया था। उस समय राज्य में बीजेपी की सरकार थी, और मुख्यमंत्री रघुवर दास ने इन पुलिसकर्मियों को स्थायी पद देने का वादा किया था, लेकिन सरकार बदलने के बाद यह वादा पूरा नहीं हो सका।

हाल की स्थिति और भी चिंताजनक है, क्योंकि सहायक पुलिसकर्मियों का सेवा विस्तार समाप्त होने वाला है और न तो उन्हें स्थायी नियुक्ति मिली है, न ही किसी अन्य भर्ती की व्यवस्था दिख रही है। यह हालत उन्हें बेरोजगारी की ओर ले जा सकती है। 2020 में उन्हें नौकरी स्थायी होने का आश्वासन मिला था, लेकिन अभी तक कुछ ठोस नहीं हुआ है।

पिछले साल, सहायक पुलिसकर्मियों ने मुख्यमंत्री आवास और विधानसभा का घेराव किया था, जिसमें वेतन बढ़ोतरी की मांग की गई थी। सरकार ने अंततः उनके वेतनमान में केवल 2,000 रुपये की वृद्धि की, जो कि उनकी सभी मांगों का समाधान नहीं था।

अब सहायक पुलिसकर्मी अपने भविष्य की सुरक्षा के लिए फिर से प्रदर्शन करने को मजबूर हैं। महत्वपूर्ण होगा कि वे अपनी नौकरी बचाने के लिए कौन से कदम उठाते हैं और सरकार उनकी समस्याओं का समाधान कैसे करती है।

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