जमशेदपुर: झारखंड के जमशेदपुर से सटे पटमदा क्षेत्र, जो अपनी सब्जी खेती के लिए मशहूर है, इन दिनों किसानों के लिए गहरे संकट का सबब बन गया है। इस बार टमाटर की बंपर पैदावार ने किसानों के चेहरों पर खुशी लाने के बजाय निराशा और मजबूरी की लकीरें खींच दी हैं। लाल-लाल टमाटरों से लदे खेत अब उम्मीद की जगह हताशा का प्रतीक बन गए हैं, क्योंकि न तो खरीदार मिल रहे हैं और न ही टमाटर को संरक्षित करने की कोई व्यवस्था। मजबूरन किसानों को अपनी मेहनत से उगाई फसल को खेतों में ही फेंकना पड़ रहा है।
लागत भी नहीं निकल रही, खरीदारों की कमी
पटमदा के किसानों ने इस साल टमाटर की शानदार पैदावार हासिल की। लेकिन बाजार में टमाटर का भाव इतना गिर गया कि 2 रुपये प्रति किलो के दाम पर भी खरीदार नहीं मिल रहे। किसानों का कहना है कि व्यापारी उनके इलाके तक आने को तैयार नहीं हैं और स्थानीय बाजार में भी टमाटर बिक नहीं रहा। हालात ऐसे हैं कि एक बीघा टमाटर की फसल तैयार करने में लगने वाली लागत—20 से 30 हजार रुपये—भी वसूल करना मुश्किल हो गया है। नतीजा यह कि करीब 20 किसानों ने अपने 10 बीघा से अधिक खेतों में लगे टमाटर को ट्रैक्टरों से वापस खेतों में फेंक दिया।
कोल्ड स्टोरेज का अभाव बना सबसे बड़ी समस्या
किसानों की परेशानी का सबसे बड़ा कारण इलाके में कोल्ड स्टोरेज की कमी है। अगर कोल्ड स्टोरेज की सुविधा होती, तो टमाटर को सुरक्षित रखकर बाद में बेहतर कीमत पर बेचा जा सकता था। लेकिन इस सुविधा के अभाव में टमाटर तेजी से खराब हो रहे हैं। किसानों का कहना है, “अगर हमारे पास कोल्ड स्टोरेज होता, तो हम अपनी फसल बचा सकते थे। लेकिन अब मजबूरी में इसे फेंकना पड़ रहा है।”
कंपनी ने भी दिया धोखा
किसानों ने हिम्मत नहीं हारी और रांची की एक टमाटर सॉस बनाने वाली कंपनी से संपर्क किया। कंपनी ने शुरुआत में टमाटर की मांग दिखाई, जिससे किसानों में उम्मीद जगी। ट्रैक्टर भरकर टमाटर रांची पहुंचाया गया, लेकिन वहां पहुंचने पर कंपनी ने टमाटर लेने से इनकार कर दिया। मजबूरन किसानों को टमाटर वापस लाकर खेतों में फेंकना पड़ा। एक किसान ने कहा, “हमने सोचा था कि अब फसल बिक जाएगी, लेकिन कंपनी ने भी हमें धोखा दे दिया। अब हमारे पास फेंकने के सिवा कोई चारा नहीं बचा।”
खेतों में बिखरे टमाटर, किसानों की टूटी उम्मीदें
पटमदा के खेतों में अब चारों तरफ फेंके हुए टमाटरों का ढेर नजर आ रहा है। जो फसल कभी किसानों की मेहनत और उम्मीदों का प्रतीक थी, वह अब सड़ रही है। किसानों का कहना है कि टमाटर को खेत में छोड़ने से अगली फसल को भी नुकसान हो सकता है, इसलिए मजदूरी देकर टमाटर तुड़वाकर फेंकना उनकी मजबूरी बन गई है। एक किसान ने दुखी मन से कहा, “मरता क्या न करता, हालात ने हमें इस कदम तक पहुंचा दिया।”
सरकार से उम्मीद, लेकिन कब तक?
किसानों की इस दुर्दशा के बीच अब नजरें स्थानीय विधायक और जिला प्रशासन पर टिकी हैं। क्षेत्र में कोल्ड स्टोरेज की सुविधा और बेहतर बाजार व्यवस्था की मांग जोर पकड़ रही है। लेकिन सवाल यह है कि क्या प्रशासन इस दिशा में कोई ठोस कदम उठाएगा, या किसान इसी तरह अपनी मेहनत को खेतों में फेंकते रहेंगे? यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा।
फिलहाल, पटमदा के किसानों की कहानी एक कड़वी सच्चाई को बयां कर रही है—बंपर पैदावार भी किसानों के लिए खुशी की गारंटी नहीं बन सकती, जब तक कि उनकी मेहनत को सही दाम और संरक्षण का सहारा न मिले।