रांची,
राज्य के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल रिम्स में आयुष्मान भारत योजना के लाभार्थियों को हृदय रोग के उपचार के लिए गंभीर परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। हालात इतने गंभीर हो गए हैं कि मरीजों को गंभीर स्थिति में भी इलाज के लिए लगभग एक सप्ताह का इंतज़ार करना पड़ता है, जबकि धनवानों को तात्कालिक उपचार मिल जाता है।
गरीबों की अनदेखी, अमीरों का त्वरित इलाज
रिम्स में हृदय रोगियों को जब स्टेंट या पेसमेकर की आवश्यकता होती है, तो आयुष्मान योजना के तहत लाभार्थियों को मंज़ूरी की लंबी प्रक्रिया का सामना करना पड़ता है। इस दौरान उन्हें अस्पताल में ही रहना पड़ता है। दूसरी ओर, निजी अस्पतालों में ये उपचार तुरंत उपलब्ध कराए जाते हैं। कई मरीज योजना के लाभ के बावजूद उधार लेकर अपना इलाज करा रहे हैं, क्योंकि सिंगल चेंबर पेसमेकर की कीमत लगभग 1 लाख रुपये और डबल चेंबर का 1.30 लाख रुपये है।
जांच पर भारी खर्च
आयुष्मान योजना के तहत इलाज कराने से पहले मरीजों को कई तरह की महंगी जांचों से गुजरना पड़ता है, जिनकी लागत 10 हजार रुपये तक पहुँच सकती है। जब तक इन जांचों की प्रक्रिया पूरी नहीं होती, तब तक आयुष्मान योजना से मंजूरी नहीं मिलती, जिससे मरीजों को लंबा इंतज़ार करना पड़ता है।
अन्य विभागों में भी समस्या
केवल कार्डियोलॉजी ही नहीं, बल्कि ऑर्थोपेडिक्स, सीटीवीएस और न्यूरोलॉजी विभागों में भी आयुष्मान लाभार्थियों की स्थिति चिंताजनक है। ऑपरेशन की तारीख मिलने के बाद भी स्टेंट और अन्य उपकरणों की उपलब्धता में देरी मरीजों के लिए और अधिक समस्याएँ उत्पन्न कर रही है।
रिम्स प्रबंधन की प्रतिक्रिया
रिम्स के पीआरओ डॉ. राजीव रंजन ने बताया कि स्टेंट की आपूर्ति जन औषधि केंद्र के माध्यम से की जाती है और इसमें देरी जन औषधि केंद्र की ओर से हो रही है। उन्होंने कहा कि अस्पताल प्रशासन ने मौखिक और लिखित रूप से सुधार के निर्देश दिए हैं, ताकि इंतज़ार कर रहे मरीजों को जल्द राहत मिल सके।
निजी अस्पतालों का कैश में इलाज का दबाव
रांची के कुछ निजी अस्पतालों में आयुष्मान योजना के अंतर्गत इलाज से पहले मरीजों पर कैश में इलाज कराने का दबाव बनाया जा रहा है। जब यह स्पष्ट हो जाता है कि मरीज आर्थिक रूप से सक्षम नहीं है, तब जाकर उन्हें योजना के तहत इलाज दिया जाता है।