सरयू राय ने झारखंड सरकार को घेरा, कहा- सारंडा को लेकर भ्रम नहीं फैलाना चाहिए

जमशेदपुर। जमशेदपुर पश्चिमी के विधायक सरयू राय ने झारखंड सरकार पर सारंडा सघन वन क्षेत्र को लेकर स्पष्ट प्रतिवेदन न देने और भ्रम की स्थिति पैदा करने का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा कि सरकार को जनता के सामने सारंडा के खनन और संरक्षण की वस्तुस्थिति स्पष्ट रूप से रखनी चाहिए।

सरयू राय ने कहा कि सारंडा में लौह अयस्क का खनन 1909 से चल रहा है, और इसके लिए वन विभाग ने अब तक तीन महत्वपूर्ण वर्किंग प्लान तैयार किए। उन्होंने सरकार से यह सवाल उठाया कि 1996 के बाद सारंडा के लिए कोई वर्किंग प्लान क्यों नहीं बनाया गया।

विधायक ने कहा कि सारंडा में साल का पेड़ लौह स्टील जितना महत्वपूर्ण है, और इसके संरक्षण पर हमेशा ध्यान देना चाहिए। उन्होंने कहा कि विभिन्न केंद्रीय समितियों और विशेषज्ञ समूहों ने सारंडा में खनन के प्रभाव, वन और वन्य जीव संरक्षण के उपाय पर कई रिपोर्ट दी हैं, लेकिन राज्य सरकार ने इन पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं की।

सरयू राय ने आरोप लगाया कि वर्तमान में सारंडा में खनन क्षेत्र ज्यादातर माइनिंग ज़ोन में हैं, और प्रतिवर्ष औसतन 25 मिलियन टन लौह अयस्क का खनन होता रहा है। उन्होंने कहा कि झारखंड सरकार के पास खनन क्षेत्र का जी-2 आंकड़ा नहीं है, जिससे निवेशकों को भी संदेह होता है।

विधायक ने यह भी बताया कि स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड (सेल) सारंडा में सबसे बड़ी माइनिंग कंपनी है। उनका कहना है कि सेल ने पर्यावरण स्वीकृति के बिना वन पथ चौड़ा किया, जिससे वन्य जीवों और स्थानीय लोगों को नुकसान हुआ।

सरयू राय ने नदियों के प्रदूषण का भी जिक्र किया, जिसमें सारंडा के खनन से कारो और कोयना नदियां लाल हो गईं। उन्होंने कहा कि सारंडा रिज़र्व फॉरेस्ट में माइनिंग पर भारत सरकार के नियम लागू होंगे, और पर्यावरण एवं वन मंत्रालय की स्वीकृति अनिवार्य है।

उन्होंने सरकार से स्पष्ट रूप से कहा कि सस्टेनेबुल माइनिंग डेवलपमेंट प्लान के आधार पर सारंडा में खनन होना चाहिए और इसे लेकर संपूर्ण पारदर्शिता और स्पष्टता रखी जानी चाहिए।

विधायक ने यह भी बताया कि खनन लीज के समाप्त होने के बाद ऑक्शन आधारित बंदोबस्त नहीं किया गया, जिससे सरकार को 300 करोड़ रुपए का संभावित लाभ भी नहीं मिल पा रहा।

सरयू राय ने निष्कर्ष निकाला कि सरकार को अब तुरंत सारंडा पर स्पष्ट नीति और रुख अपनाना चाहिए ताकि वन, वन्य जीव और स्थानीय लोगों के हित सुरक्षित रह सकें।

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