रांची : इंद् जतरा समिति दलादली, नगरी की ओर से शनिवार को दलादली जतरा मैदान में करम इंद् जतरा महोत्सव का आयोजन किया गया। जहां भगवान इंद्र की पूजा अर्चना की गई। उक्त महोत्सव में आसपास के विभिन्न क्षेत्रों से खोड़ा/ टोली के रूप में लोग पारंपरिक लोकगीत, नृत्य, पारंपरिक वाद्य यंत्र के रूप में ढोल, नगाड़ा, मांदर बजाते हुए करम इंद् जतरा मिलन समारोह में शामिल हुए। जहां अतिथियों द्वारा समिति की ओर से विभिन्न खोड़ा/टोली के लोगों को उत्कृष्ट प्रदर्शन प्रदर्शित करने के लिए पुरस्कार स्वरूप चार-चार कुर्सी एवं नगद भेंट कर सम्मानित किया गया।
कार्यक्रम में उपस्थित समिति के संरक्षक रातु प्रखंड के पूर्व प्रमुख सुरेश मंडा जी, अध्यक्ष अमित मुंडा जी, कोषाध्यक्ष सोनू मुंडा जी, ललित मुंडा जी,सचिव बिरसू मुंडा जी, उमेश मुंडा जी, बतौर अतिथि पहुंचे राष्ट्र सेवा फाउंडेशन के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष सुनील कुमार सिंह , समाजसेवी– अभिषेक मिश्रा , रामाशीष शर्मा , अशोक दुबे , कलाम आजाद, नंद किशोर मेहता, बुद्धराम उरांव, अजय राय, रामभरोस महतो, सुधीर महतो इन सबों ने संयुक्त रूप से बताया कि इंद् जतरा समिति दलादली, नगरी के द्वारा विगत 25 वर्षों से करम पर्व के अवसर पर मिलन समारोह का आयोजन किया जाता रहा है। यह महोत्सव– शक्ति, यौवन और जीवन का प्रतीक माने जाने वाले करम देवता को समर्पित है। यह त्यौहार में पारंपरिक नृत्य और गीत प्रमुख हैं। जो उत्साह और आस्था को दर्शाते हैं। करम पर्व पर जतरा मेला लगता है। जहां लोग दूर-दूर से खोड़ा/ टोली के रूप में पारंपरिक लोक गीत, लोक नृत्य के साथ पारंपरिक वाद्य यंत्र मांदर, ढोल व नगाड़ा बजाते आते हैं।
उन्होंने कहा कि यह पर्व के उत्सव में अविवाहित आदिवासी लड़कियां “जावा” त्यौहार मनाती हैं, जिसमें नौ प्रकार के बीजों से एक छोटी टोकरी सजाती हैं।
करम पर्व प्रकृति के प्रति सम्मान और उसके संरक्षण का संदेश देता है। यह पर्व अच्छी फसल और कृषि उत्पादन में वृद्धि के लिए मनाया जाता है। इस पर्व में लोग अपने परिवार और समाज में खुशहाली समृद्धि और अच्छे स्वास्थ्य की की कामना करते हैं। यह मिलन समारोह लोगों को एक साथ लाता है, जिससे भाईचारा और सामाजिक सद्भाव बढ़ता है।
उन्होंने कहा कि इंद् जतरा महोत्सव करम या कर्मा त्यौहार आने के 2_4 दिन पहले से तैयारी की जाती है जो करम पर्व के दो-चार दिन बाद इंद् जतरा महोत्सव मिलन समारोह संपन्न होने के उपरांत समापन किया जाता है। कहा कि जिस तरह हिंदू रीति रिवाज में “तुलसी” के पौधे का महत्व है। ठीक उसी प्रकार आदिवासी/ जनजाति समाज में करम पेड़ का महत्व है। कार्यक्रम में विभिन्न खोड़ा/ टोली ने अपनी लोक संस्कृति और नृत्य की अद्भुत प्रस्तुति दी। और अपने शानदार नृत्य और गीत से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। जिससे प्रभावित होकर उपस्थित कई लोगों ने भी अपने आप को रोक नहीं सके, और खोड़ा/ टोली के साथ वह भी थिरकने लगे।
