झारखंड गौ सेवा को और सशक्त करेगी झारखंड सरकार: शिल्पी नेहा तिर्की
रांची: झारखंड गौ सेवा आयोग के तत्वावधान में पारिस्थितिकीय संतुलन एवं आधुनिकता के परिप्रेक्ष्य में गो सेवा के क्षेत्र में उभरती चुनौतियां एवं संभावनाएं पर दो दिवसीय कार्यशाला पशुपालन भवन, हेसाग (रांची) के सभागार में आज से (19 जून) शुरू हुई। राष्ट्रीय स्तर की इस कार्यशाला का उद्घाटन कृषि, पशुपालन, सहकारिता मंत्री शिल्पी नेहा तिर्की ने की। उद्घाटन सत्र के मौके के दौरान उन्होंने कहा कि जिस उद्देश्य से झारखंड गौ सेवा आयोग का गठन किया गया था, वह आयोग के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष के संयुक्त प्रयास से उसे प्राप्त करने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। अन्य राज्यों में भी गौ सेवा आयोग हैं पर वे सक्रिय नहीं दिखती। अगर सक्रिय भी हैं तो कार्य करने की इच्छाशक्ति नहीं दिखती। झारखंड में आयोग के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष एक विजन के साथ काम कर रहे हैं। गौ सेवा सेक्टर में स्वावलंबन लाने में लगे हैं। मंत्री ने गौ शालाओं से बायोफर्टिलाइजर की खरीद किये जाने के विचार को महत्वपूर्ण और उपयोगी बताया। उन्होंने उम्मीद जताते कहा कि झारखंड सहित देशभर के राज्यों से गौ सेवा के क्षेत्र में सक्रिय विशेषज्ञों और अन्य के सौजन्य से इस कार्यशाला के जरिए जो चीजें, सुझाव निकलकर सामने आएंगे, वह कृषि विभाग को मिलेगा। इसमें जो किसानों के लिए हितकर होगा, उसका उपयोग सरकार के स्तर से किया जायेगा। कृषि मंत्री ने माना कि गौ शालाओं के जो सहयोग, अनुदान मिलना चाहिए, अपेक्षित रुप से नहीं मिल पा रहा है। फिर भी गुजरात समेत दूसरे राज्य जहां प्रति गाय के लिए प्रतिदिन 30-40 रुपए ही दिये जाते हैं, उसकी तुलना में यहां 100 रुपए दिये जा रहे हैं। सालाना अनुदान समय पर गौ शालाओं को मिले, इसके लिए प्रयास हो रहा है। कई लोग निःस्वार्थ भाव से गो सेवा में अपने अपने स्तर से यहां लगे हैं जो खास है। कृषि विभाग अपने स्तर से गौ सेवा आयोग को और दुरूस्त करने को हरसंभव प्रयास करेगा। राज्य सरकार किसानों, गो पालकों और गौशालाओं के साथ लगातार सहयोग कर रही है। पिछले वर्ष में गौ शालाओं को अनुदान के तौर पर 2.50 करोड़ रुपए निबंधित गौ शालाओं को दिये जाने की भी सूचना शिल्पी नेहा तिर्की ने दी। कार्यशाला के उद्घाटन से पूर्व स्थानीय कलाकारों द्वारा मंत्री, विभागीय अधिकारियों और मेहमानों का विशेष स्वागत पारंपरिक तरीके से किया। दीप प्रज्जवलन के बाद कार्यशाला का उद्घाटन हुआ। मौके पर झारखंड सेवा आयोग के अध्यक्ष राजीव रंजन प्रसाद, उपाध्यक्ष राजू गिरी, कृषि, पशुपालन विभाग के सचिव अबु बकर सिद्दीक पी, पूर्व केंद्रीय मंत्री और गुजरात के सांसद रहे डॉ वल्लभभाई कथीरिया, झारखंड गौ सेवा आयोग के सचिव डॉ संजय प्रसाद, निबंधक डॉ मुकेश मिश्रा, पशु चिकित्सक डॉ प्रभात पांडेय, डॉ जय तिवारी, गौ अनुसंधान विकास केंद्र, नागपुर (महाराष्ट्र) के समन्वयक सुनील मानसिंहका, प्रादेशिक गौशाला संघ के महामंत्री अनिल मोदी सहित अन्य भी उपस्थित थे। कार्यशाला के दूसरे सत्र में वित्त मंत्री राधाकृष्ण किशोर सहित अन्य भी शामिल हुए।
अर्थव्यवस्था को गति देने में गौ माताओं का अहम योगदान: किशोर
मंत्री राधाकृष्ण किशोर ने गो उद्यमिता विकास पर आधारित तकनीकी सत्र में गौ शालाओं और गो माताओं के महत्व को स्वीकार किया। कहा कि झारखंड गौ सेवा आयोग के स्तर से आयोजित इस राष्ट्रीय कार्यशाला के जरिए पता लगा कि गौमाता की और कितनी खासियत है। पहले हमसब दूध, दही, पनीर के बारे में पता था। पर सच यह है कि गोमाताओं से हमारी अर्थव्यवस्था, संस्कृति कितनी विकसित होती रही है। हर भारतीय के मन में अपने देश के लिए जितना प्रेम रहता है, गोमाताओं के प्रति भी रहती है। दुनिया की जितनी सभ्यताएं उत्तर से दक्षिण, पूर्व से पश्चिम तक की रही है, उसमें सभ्यताओं के विकास में गौमाताओं का सबसे अहम योगदान रहा है। मंत्री ने गोमाताओं के महत्व को रेखांकित करते कहा कि मां की कोख से जन्म लेने के बाद वे गाय का दूध पीकर बडे हुए। उसका ही असर और परिणाम है कि वः आज राज्य में वित्त मंत्री के तौर पर जवाबदेही संभाल रहे हैं।
देश दुनिया में गो धन के जरिए विकास की राह पकडने की जानकारी मंत्री ने दी। कहा कि 1980 में वे बिहार विधानसभा के सदस्य बने थे। अभी वे झारखंड में मंत्री हैं। इतने दिनों में उन्होंने कनाडा, स्विट्जरलैंड, फ्रांस सहित अन्य देशों के विकास क्रम को भी देखा। इन देशों के आर्थिक विकास में सबसे बड़ा योगदान पशुधन का है। हमारा देश भगवान विष्णु, मर्यादा पुरुषोत्तम राम का देश रहा है। यहां पशुधन की कमी नहीं रही है। पर सच यह है कि अलग राज्य बने झारखंड को 25 साल हो गये। पर पशुधन मामले में कोई रोडमैप देखने को यहां नहीं मिला। जब से हेमंत सोरेन सरकार आयी, इस दिशा में पहल हुई है। झारखंड की भी अर्थव्यवस्था में पशुधन की अहमियत रही है। पर राज्य की आवश्यकता के अनुसार दूध की उपलब्धता नहीं दिखती थी। करीब पौने चार करोड़ की आबादी झारखंड की है। 87 लाख गाय और 52 लाख भैंस हैं। पर जरूरत के हिसाब से दूध नहीं था। हेमंत सरकार ने इन सब चुनौतियों को देखते ही झारखंड गौ सेवा आयोग को जवाबदेह बनाया और जिम्मेदार लोगों को दायित्व सौंपा है। भारत में प्रति व्यक्ति प्रतिदिन 500 ग्राम दूध की जरूरत होती है पर यहां 160 ग्राम की ही उपलब्धता रही है। एनीमिक माताओं और 40% से अधिक बच्चों के कुपोषित होने के आंकड़ों को देखते अब सरकार का प्रयास है कि अगले तीन चार सालों में प्रति व्यक्ति दूध की उपलब्धता 300-450 ग्राम प्रतिदिन हो सके। राधा कृष्ण किशोर ने गौ सेवा आयोग को पशुपालन विभाग के साथ मिलकर प्रस्ताव देने को कहा और अगले बजट में उसे स्वीकृत किये जाने का भरोसा दिलाया।
नागपुर (महाराष्ट्र) में गौशालाओं के जरिए सफलता की कहानियां लिखे जाने के प्रयास को देखने को वहां जाने की भी इच्छा जताई।
गौशालाओं को आत्मनिर्भर बनाने के मिशन पर आयोग: रंजन
आयोग के अध्यक्ष राजीव रंजन प्रसाद ने उद्घाटन सत्र के दौरान कहा कि देश के अलग अलग हिस्सों के विशेषज्ञ यहां जुटे हैं। शिमला, गोवा, राजस्थान, मैसूर (कर्नाटक), बंगाल जैसी जगहों के एक्सपर्ट गौ सेवा के क्षेत्र में उभरती चुनौतियां एवं संभावनाएं पर चर्चा करेंगे। इसका उपयोग आनेवाले समय में आदर्श नीति बनाने में होगा। पहले यहां के गो सेवा आयोग का काम गौशालाओं को अनुदान देने और आधारभूत संरचनाओं के विकास में योगदान देने तक था। पर हेमंत सोरेन सरकार में अब गौ शालाओं को आत्मनिर्भर बनाने की भी पहल हो रही है। सभी गौशालाओं का भौतिक निरीक्षण किया गया। दूसरे राज्यों में हो रहे प्रयासों को देखा। गौशालाओं की शक्ल बदले, उसके लिए कई प्रयास शुरू किए गए हैं। झारखंड गो ग्राम ऐसा ही प्रयास है। अभी प्रारंभिक तौर पर 5500 महिलाओं को प्रशिक्षित करने का प्रयास हो रहा है जिससे उन्हें आत्मनिर्भर बनाया जा सके। उनके प्रोडक्ट को ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर बेचते हुए उन्हें सशक्त बनाने की तैयारी है।
गो पालन के जरिए महिला सशक्तिकरण: राजू गिरी
उपाध्यक्ष राजू गिरी ने राष्ट्रीय स्तर के कार्यशाला के आयोजन के लिए सुझाव देने में कृषि सचिव को विशेष तौर पर धन्यवाद दिया। कहा कि हेमंत सरकार के मार्गदर्शन में गौशालाओं को मजबूत करने का प्रयास जारी है। राज्य भर की महिलाओं को प्रशिक्षण देकर उन्हें आत्मनिर्भर बनाने का अभियान चल रहा हो। प्रशिक्षण देकर गोबर से दीप, अगरबत्ती तैयार कराये जा रहे हैं। अभी 200-200 महिलाओं को प्रशिक्षण मिला है। आगे 5000 से अधिक को ट्रेंड किया जायेगा।
इको सिस्टम के लिए भी पशुधन का महत्व: सचिव
सचिव अबु बकर सिद्दीक ने मौके पर कहा कि आज दुनिया में पर्यावरण बदलाव की बात हो रही है। पशु, पक्षियों के संरक्षण, संवर्धन के जरिए भी पर्यावरण संरक्षण के लिए मदद दी जा सकती है। इको सिस्टम को मजबूत करने में पशुधन का भी महत्व है। राज्य सरकार अपने स्तर से गो सेवा आयोग के जरिए और अन्य तरीकों से सहयोग दे रही है। पहले 50रुपये प्रति पशु चारा के तौर पर दिये जाते थे जिसे अब 100 रुपया किया गया है। यहां कार्यशाला के जरिए नॉलेज शेयरिंग, गुड प्रैक्टिससेज को हम सब सुनेंगे और आने वाले समय में नीतियां तय करेंगे।
गोबर, गोमूत्र का व्यावसायिक उपयोग का समय: वल्लभभाई
पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ वल्लभभाई कथीरिया समेत सुनील मानसिंह, डॉ सत्यप्रकाश समेत अन्य विशेषज्ञों ने कहा कि देश में गोमूत्र, गोबर का व्यावसायिक उपयोग किया जा रहा है। मेडिकल साइंस की रिपोर्ट में इसके जरिए कई असाध्य बीमारियों के ईलाज, प्राकृतिक खेती का जिक्र हो रहा है। देशी गाय का पालन और उसके दूध के जरिए भी लाभ उठाया जा रहा है। गोपालन और इसके जरिए स्टार्ट अप के भी सफल उदाहरणों का जिक्र विशेषज्ञों ने किया।
चार सत्र में आयोजन
कार्यशाला में कुल चार तकनीकी सत्र का आयोजन तय हुआ है।तकनीकी सत्र -1 में पारिस्थतिकी संतुलन एवं आधुनिकता के परिप्रेक्ष्य में गो सेवा के क्षेत्र में उभरती चुनौतियां एवं संभावनाएं विषय पर मुख्य व्याख्यान हुआl इस सत्र में कुल 4 वक्ता थे।
दूसरे तकनीकी सत्र में गो उद्यमिता विकास पर चर्चा हुई। अब 20 जून को कार्यशाला के दूसरे दिन तीसरे तकनीकी सत्र में पंचगव्य चिकित्सा और अंतिम सत्र में नस्ल संरक्षण एवं A2 दूध के वैज्ञानिक महत्व पर व्याख्यान एवं गोवंशीय पशुओं से संबधित गो सुरक्षा कानून/नियम पर चर्चा होगी।
