पति की लंबी आयु के लिए सुहागिन महिलाओं ने की वट सावित्री की पूजा

संथाल हूल एक्सप्रेस संवाददाता

बरहेट : सोमवार को सुहागिन महिलाओं ने पति की लंबी आयु के लिए वट सावित्री का व्रत रख पूजा-अर्चना की। प्रखंड क्षेत्र के विभिन्न स्थानों में बट सावित्री की पूजा पूरे धूमधाम के साथ की गई। गुमानी नदी के तट पर भूतेश्वर नाथ मंदिर के समीप अशोक पांडे ने पूरे विधि विधान के साथ बट सावित्री की पूजा अर्चना कराई और सत्यवान सावित्री की कथा सुनाई। मिडिल स्कूल के समीप, पंचकठिया, कुसमा, लवरी, झबरी, सिमलधाप, बरमसिया सहित अन्य स्थानों पर सुहागिन महिलाओं ने बट सावित्री की पूजा कर सावित्री सत्यवान की कथा सुनी। इसके पूर्व रविवार को ही महिलाओं ने सुहाग के प्रतीक बिंदी, सिंदुर, चूड़ी, काजल अन्य श्रृंगार की सामग्री सहित फल, बांस का पंखा व अन्य पूजा की सामानों की खरीदारी कर ली थी। जिसके चलते बाजारों में काफी रौनक देखी गई। पूजन सामग्री की दुकानों में काफी भीड़ बार लगी रही। रविवार की शाम को जोरदार बारिश के बीच महिलाओं को खरीदारी करने में काफी परेशानी का सामना भी करना पड़ा। पति की लंबी आयु की दुआ करने के साथ-साथ महिलाएं उसकी तरक्की के लिए उपवास भी रखती हैं। ऐसे में वट सावित्री व्रत का महत्व अधिक बढ़ जाता है। ये उपवास हर सुहागिन महिला के लिए खास होता है। वट सावित्री व्रत के दिन सुहागिनें पूरे विधि-विधान से पूजा करती हैं। इस दौरान कुछ महिलाएं निर्जला उपवास भी रखती हैं।

वट वृक्ष की पूजा का खास महत्व है

माना जाता है कि बट वृक्ष की पूजा के बिना व्रत पूरा नहीं होता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इसमें ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों देवों का वास होता है। इसलिए व्रत रखने वाली महिलाओं को तीनों देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त होता है। यह उपवास ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को रखा जाता है। वट सावित्री वट पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। इस दौरान सत्यवान कथा सुने बिना ये व्रत अधूरा माना जाता है।

वट सावित्री व्रत कथा

पौराणिक मान्यता है कि वट सावित्री व्रत करने से पति की आयु लंबी होती है, और परिवार में भी सुख-समृद्धि बनी रहती है। यही नहीं अखंड सौभाग्यवती भव का भी आशीर्वाद प्राप्त होता है। ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि इस दिन से जुड़ी पौराणिक कथा प्रचलित है। ऐसा माना जाता है कि मद्रदेश में अश्वपति नाम के धर्मात्मा राजा का राज था और उनकी कोई भी संतान नहीं थी। राजा ने संतान प्राप्ति के लिए यज्ञ करवाया, जिसके शुभ परिणाम के बाद उनके घर एक कन्या का जन्म हुआ। इस कन्या का नाम सावित्री रखा गया। समय के साथ-साथ जब सावित्री बड़ी और विवाह योग्य हुई, तो उन्होंने द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान को अपने पति रूप में वरण किया।

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