नक्सली संगठन के खिलाफ ईडी का बड़ा एक्शन, पीएलएफआई प्रमुख दिनेश गोप समेत 19 पर नई चार्जशीट

रांची । प्रवर्तन निदेशालय ईडी ने प्रतिबंधित नक्सली संगठन पीपुल्स लिबरेशन फ्रंट ऑफ इंडिया यानी पीएलएफआई के स्वयंभू प्रमुख दिनेश गोप और 19 अन्य व्यक्तियों व संस्थाओं के खिलाफ धनशोधन मनी लॉन्ड्रिंग और आतंकवाद के वित्तपोषण के मामले में गुरुवार को एक पूरक अभियोजन शिकायत सप्लीमेंटल चार्जशीट दायर की है। यह कार्रवाई झारखंड में नक्सली गतिविधियों को मिलने वाले वित्तीय समर्थन पर प्रहार करने की केंद्र सरकार की रणनीति का हिस्सा मानी जा रही है।

ईडी ने पीएमएलए अदालत में दायर की पूरक चार्जशीट। संगठन पर 20 करोड़ रुपये से अधिक की जबरन वसूली का आरोप।
अवैध धन को शेल कंपनियों और लग्जरी वाहनों में निवेश करने का खुलासा।

जबरन वसूली के पैसे से आतंक को फंडिंग

ईडी की रांची इकाई द्वारा दायर इस 5000 पन्नों से अधिक की शिकायत में आरोप लगाया गया है कि पीएलएफआई ने झारखंड के विभिन्न जिलों, खासकर ग्रामीण और वन क्षेत्रों में ठेकेदारों, व्यवसायियों और स्थानीय लोगों से ‘लेवी’ या जबरन वसूली के जरिए लगभग 20 करोड़ रुपये की अवैध आय अर्जित की। एजेंसी के अनुसार, यह राशि संगठन की आतंकवादी गतिविधियों जैसे हथियारों की खरीद, नए सदस्यों को भर्ती करने और अपने सदस्यों के रहन-सहन के लिए इस्तेमाल की जा रही थी।

शेल कंपनियों के जरिए हुआ धनशोधन

जांच में पाया गया कि जबरन वसूली से प्राप्त इस अवैध धन को वैध रूप देने के लिए इसे कथित तौर पर कई शेल कंपनियों के जरिए घुमाया गया। इस धन का इस्तेमाल व्यक्तिगत संपत्तियां, शानदार वाहन और फिक्स्ड डिपॉजिट खरीदने में किया गया। ईडी ने अब तक इस मामले में दिनेश गोप और उसके सहयोगियों से जुड़ी 12 करोड़ रुपये से अधिक मूल्य की संपत्तियों को कुर्क भी किया है।

कौन है दिनेश गोप?

दिनेश गोप, जिसका असली नाम दिनेश गोपाल है, पीएलएफआई का प्रमुख सदस्य और फंडिंग नेटवर्क का मास्टमाइंड माना जाता है। वह मई 2023 में राष्ट्रीय जांच एजेंसी एनआईए द्वारा आतंकवाद विरोधी कानून यूएपीए के तहत नेपाल से गिरफ्तार किया गया था। इसके बाद, अगस्त 2025 में ईडी ने उसे धनशोधन के मामले में हिरासत में लेकर जेल भेज दिया था। उस पर राज्य में नक्सली गतिविधियों को बढ़ावा देने और वित्तपोषित करने का आरोप है।

क्या है पीएलएफआई?

पीएलएफआई माओवादी संगठन सीपीआई-माओवादी से अलग हुआ एक गुट है, जो मुख्य रूप से झारखंड के ग्रामीण इलाकों में सक्रिय है। भारत सरकार ने इसे 2015 में एक प्रतिबंधित संगठन घोषित किया था। सुरक्षा एजेंसियों का मानना है कि इस संगठन का वैचारिक आधार कमजोर है और यह ज्यादातर आपराधिक गतिविधियों और वसूली के धंधे में लिप्त है। गृह मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, नक्सलवाद के खिलाफ लड़ाई में उसके वित्तीय ढांचे को नष्ट करना सबसे अहम है। ईडी की यह कार्रवाई इसी दिशा में एक सशक्त कदम है। मंत्रालय ने नक्सल प्रभावित राज्यों में मनी लॉन्ड्रिंग और आतंक फंडिंग के मामलों की जांच के लिए एक बहु-एजेंसी समन्वय समिति का गठन भी किया है। इस पूरक चार्जशीट के दायर होने के बाद अब मामले की अगली सुनवाई का इंतजार है। कानूनी मान्यताओं का कहना है कि यह मामला नक्सली गतिविधियों और उनके वित्तपोषण के बीच की कड़ी को स्थापित करने में एक मील का पत्थर साबित हो सकता है।

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