करवा चौथ: प्रेम, आस्था और विश्वास का पवित्र प्रतीक

संथाल हूल एक्सप्रेस डेस्क

हर साल कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को पूरे देश में करवा चौथ का पर्व बड़ी श्रद्धा, प्रेम और उत्साह के साथ मनाया जाता है। यह दिन भारतीय संस्कृति में पति-पत्नी के स्नेह, समर्पण और अटूट विश्वास का प्रतीक माना जाता है।


???? उपवास, प्रार्थना और प्रेम का पर्व

करवा चौथ पर विवाहित महिलाएँ अपने पति की लंबी आयु, अच्छे स्वास्थ्य और समृद्ध जीवन की कामना करते हुए निर्जला उपवास (बिना जल ग्रहण किए व्रत) रखती हैं।
दिनभर व्रत रखने के बाद शाम को चंद्रमा के दर्शन और अर्घ्य देकर, पति के हाथों से पहला जल ग्रहण कर व्रत पूरा किया जाता है।

यह परंपरा केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि प्रेम और निष्ठा की भावनात्मक अभिव्यक्ति है।

“उपवास, प्रार्थना और प्रेम का दिन करवा चौथ हमारे स्नेह और भक्ति की गहराई का एक प्रमाण है।”


???? इतिहास और सांस्कृतिक महत्व

करवा चौथ की परंपरा उत्तर भारत से जुड़ी है, लेकिन आज यह त्योहार पूरे देश में और विदेशों में बसे भारतीयों के बीच भी लोकप्रिय है।
‘करवा’ का अर्थ होता है मिट्टी का बर्तन — जो सुख-समृद्धि और स्नेह का प्रतीक है, जबकि ‘चौथ’ का अर्थ चतुर्थी तिथि से है।

इस दिन महिलाएँ करवा में जल या दूध भरकर पूजा करती हैं और गौरी माँ व चंद्र देव से अपने परिवार के कल्याण की कामना करती हैं।


???? पूजा-विधि और पारंपरिक मान्यताएँ

सुबह सूर्योदय से पहले सरगी (सास द्वारा दी गई थाली) ग्रहण की जाती है।

दिनभर निर्जला व्रत रखकर महिलाएँ शाम को सोलह श्रृंगार करती हैं।

करवा चौथ कथा का श्रवण किया जाता है।

रात्रि में चाँद निकलने पर छलनी से चंद्र दर्शन किया जाता है और फिर पति का मुख देखा जाता है।

यह क्षण पति-पत्नी के बीच प्रेम, आभार और आशीर्वाद का प्रतीक बन जाता है।


❤️ आधुनिक युग में करवा चौथ का नया रूप

आज के समय में करवा चौथ ने परिवारिक समानता और भावनात्मक जुड़ाव का रूप ले लिया है।
कई स्थानों पर पति भी अपनी पत्नियों के साथ उपवास रखते हैं, जिससे यह पर्व समान प्रेम और साझेदारी का उत्सव बन गया है।

सोशल मीडिया के दौर में, यह त्यौहार केवल परंपरा नहीं, बल्कि आभार और एक-दूसरे के प्रति सम्मान की भावना का उत्सव बन गया है।

करवा चौथ भारतीय नारी की आस्था, प्रेम और समर्पण का जीवंत उदाहरण है।
यह पर्व सिखाता है कि जीवन में प्रार्थना का अर्थ केवल पूजा नहीं, बल्कि प्रेम का निस्वार्थ भाव भी है।

“सच्चा करवा चौथ वही है, जहाँ व्रत के साथ-साथ मन में विश्वास और जीवन में एक-दूसरे के लिए सम्मान भी हो।” ????


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Bishwjit Tiwari
Author: Bishwjit Tiwari

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