रांची । झारखंड की घाटशिला विधानसभा सीट, जो पूर्व मंत्री रामदास सोरेन के निधन के बाद रिक्त हुई है, उपचुनाव को लेकर राजनीतिक हलचल का केंद्र बन गई है। संवैधानिक प्रावधान के तहत छह महीने के भीतर यहां उपचुनाव होना तय है। झामुमो की ओर से संभावना है कि पार्टी रामदास सोरेन के बड़े बेटे सोमेश सोरेन या उनकी पत्नी को प्रत्याशी बनाए। वहीं भाजपा की तरफ से पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन के बेटे बाबूलाल सोरेन का नाम सबसे आगे माना जा रहा है। हालांकि, दोनों ही दलों की ओर से अभी आधिकारिक उम्मीदवार की घोषणा नहीं की गई है।चुनावी इतिहास देखें तो घाटशिला सीट भाजपा के लिए अपेक्षाकृत कठिन मानी जाती है। झारखंड गठन के बाद से अब तक केवल 2014 में ही भाजपा ने यहां जीत दर्ज की थी, जब लक्ष्मण टुडू ने झामुमो और कांग्रेस के वोट बंटवारे का लाभ उठाकर जीत हासिल की थी। 2000 और 2005 में कांग्रेस के प्रदीप बालमुचू विजयी रहे थे, जबकि 2009 में रामदास सोरेन पहली बार झामुमो से विधायक चुने गए। इसके बाद 2019 और 2024 दोनों चुनावों में भी झामुमो को ही सफलता मिली।
पिछले चुनाव (2024) में रामदास सोरेन ने भाजपा प्रत्याशी बाबूलाल सोरेन को 22,446 वोटों से हराया था। 2019 में भी झामुमो को बढ़त मिली थी, जबकि भाजपा और आजसू के अलग-अलग चुनाव लड़ने से वोटों का बिखराव हुआ था। राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, इस बार उपचुनाव में कई कारक प्रभाव डाल सकते हैं। एक ओर झामुमो को रामदास सोरेन के निधन के बाद सहानुभूति वोट मिलने की संभावना जताई जा रही है, तो दूसरी ओर भाजपा के लिए बाबूलाल सोरेन और चंपाई सोरेन की सक्रियता निर्णायक हो सकती है। आदिवासी बहुल इस सीट पर परंपरागत रूप से झामुमो का प्रभाव माना जाता है, लेकिन उपचुनाव में स्थानीय समीकरण, सहानुभूति और दलगत रणनीतियां मिलकर चुनावी तस्वीर को और जटिल बना सकती हैं। कुल मिलाकर, घाटशिला उपचुनाव एक बार फिर से कांटे की टक्कर वाला मुकाबला साबित हो सकता है।
