संथाल हूल एक्सप्रेस संवाददाता
रांची:झारखंड में आदिवासी समाज का प्रमुख पर्व करमा पूजा इस बार भी पूरे राज्य में आस्था और उत्साह के साथ मनाया जा रहा है। राजधानी रांची के मोराबादी मौजा स्थित तेतर टोली सरना समिति की ओर से इस अवसर पर विशेष और भव्य आयोजन की तैयारियां पूरी कर ली गई हैं। समिति के कार्यकर्ताओं और ग्रामीणों में इस पर्व को लेकर भारी उत्साह है।
*करमा पूजा का महत्व और परंपरा*
करमा पूजा भाई-बहन के अटूट रिश्ते और प्रकृति संरक्षण का पर्व माना जाता है। इस दिन बहनें निर्जला उपवास रखती हैं और अपने भाइयों के दीर्घायु, सुख और समृद्धि की कामना करती हैं। पूजा में विशेष रूप से करमा वृक्ष की डाली (करम डाल) का पूजन होता है, जिसे पर्यावरण और जीवन संतुलन का प्रतीक माना जाता है।
समिति के मुख्य संरक्षक अंतू तिर्की ने बताया कि करमा पर्व की शुरुआत रक्षाबंधन के दिन से ही हो जाती है, जब जावा बोया जाता है। लेकिन इसका मुख्य आयोजन भाद्र मास की एकादशी को होता है। इस दिन सामूहिक रूप से लोग अखरा में एकत्रित होते हैं और करम डाल की पूजा-अर्चना करते हैं।
*तेतर टोली में विशेष आयोजन*
अंतू तिर्की ने बताया कि आज रात 9 बजे तेतर टोली सरना समिति द्वारा पूरी विधि-विधान के साथ करमा डाल का पूजन किया जाएगा। पूजा के बाद करमा कथा का वाचन होगा, जिसमें बताया जाएगा कि करमा पूजा की शुरुआत कैसे हुई और इसका धार्मिक-सामाजिक महत्व क्या है।
कथा के बाद सामूहिक रूप से लोग पारंपरिक नृत्य और गीतों में शामिल होंगे। ढोल-मांदर और नगाड़ों की थाप पर देर रात तक पारंपरिक करमा नृत्य का आयोजन होगा। इस आयोजन में आदिवासी समाज के साथ-साथ गैर-आदिवासी लोग भी शामिल होकर इस पर्व की सांस्कृतिक एकता को मजबूत करते हैं।
*पर्यावरण से जुड़ा संदेश*
करमा वृक्ष (नखुड़ा/कर्मा पेड़) को पर्यावरण संरक्षण और संतुलित जीवन का प्रतीक माना जाता है। अंतू तिर्की ने कहा कि करमा पूजा केवल धार्मिक आस्था का पर्व नहीं है, बल्कि यह प्रकृति की रक्षा और मानव-प्रकृति के संबंध को मजबूत करने का संदेश भी देता है। यही कारण है कि इस पर्व में सभी समुदायों के लोग बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं।
*ईंद जतरा की घोषणा*
समिति के मुख्य संरक्षक ने जानकारी दी कि आगामी 6 सितंबर को तेतर टोली सरना समिति द्वारा पारंपरिक ईंद जतरा का आयोजन किया जाएगा। यह जतरा ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण है। हर साल हजारों की संख्या में लोग इसमें शामिल होते हैं और यह आयोजन सामाजिक एकता का बड़ा उदाहरण बनता है।
*स्थानीय उत्साह और सामाजिक महत्व*
पूरे इलाके में करमा पूजा को लेकर खासा उत्साह देखा जा रहा है। महिलाएं करमा गीतों की तैयारी में जुटी हैं, वहीं युवाओं ने पारंपरिक नृत्य की विशेष रिहर्सल की है। आयोजन स्थल को सजाया जा चुका है और ग्रामीणों के सहयोग से इस कार्यक्रम को भव्य बनाने की योजना बनाई गई है।
तेतर टोली सरना समिति का यह आयोजन न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र बनेगा, बल्कि आदिवासी संस्कृति, परंपरा और पर्यावरण संरक्षण के संदेश को भी सशक्त करेगा।