
युवाओं की सबसे बड़ी पूंजी अब एक डिवाइस – जो बना रहा है कुछ को सितारा और कुछ को संहार का शिकार
संथाल हूल एक्सप्रेस | जितेन्द्र सेन जिछु
एक यंत्र… दो रास्ते… एक उजाला और दूसरा अंधकार
क्या आपने कभी गौर किया है कि आज आपके हाथ में जो मोबाइल है, वो आपको दुनिया की किसी भी जानकारी तक पहुंचा सकता है? वो आपको करोड़ों लोगों से जोड़ सकता है, आपकी आवाज़ को दुनिया तक पहुँचा सकता है, लेकिन वही यंत्र अगर गलत दिशा में चला जाए तो आपको अकेलेपन, तनाव, भ्रम, अपराध और अंततः विनाश की ओर भी ले जा सकता है।
आज मोबाइल और सोशल मीडिया सिर्फ तकनीक नहीं रह गई है — यह एक संस्कार बन चुका है।
जबरदस्त आंकड़े, चौंकाने वाली हकीकत
भारत में 15 से 25 साल के लगभग 90% युवा रोजाना औसतन 5 घंटे से ज्यादा सोशल मीडिया पर बिता रहे हैं।
70% से ज्यादा युवा रात को सोने से पहले मोबाइल चलाते हैं, जिससे नींद की गुणवत्ता पर बुरा असर पड़ता है।
हर 10 में से 1 युवा मानसिक तनाव, अकेलापन, और आत्मग्लानि का शिकार हो रहा है – जिसका एकमात्र कारण सोशल मीडिया की गलत लत है।
साइबर क्राइम की रिपोर्टों में सबसे ज्यादा भागीदारी 18 से 30 वर्ष के युवाओं की है।
एक तरफ सफलता की ऊंचाई – दूसरी ओर तनाव की गहराई
सफलता की मिसाल: झारखंड के ही कई गांवों में युवा यूट्यूब, इंस्टाग्राम, डिजिटली फ्रीलांसिंग, एआई टूल्स, और ऑनलाइन एजुकेशन से लाखों की कमाई कर रहे हैं। उन्होंने सोशल मीडिया को मंच बनाया, मुखौटा नहीं।
विफलता की दास्तान: पाकुड़ और साहेबगंज जैसे जिलों में दर्जनों युवा PUBG, Free Fire,, इंस्टाग्राम लाइक्स और फॉलोअर्स की होड़ में मानसिक रोगी बन चुके हैं। कुछ आत्मग्लानि तक कर चुके हैं।
मूल समस्या डिजिटल अनाथता और ‘भावनात्मक अकेलापन
आज के युवाओं को मोबाइल तो है, लेकिन मार्गदर्शन नहीं। इंटरनेट तो है, लेकिन जीवन-मूल्य नहीं। परिवार तो है, लेकिन संवाद नहीं। यही कारण है कि वह वर्चुअल दुनिया में प्यार, प्रेरणा, पहचान और प्रतिष्ठा खोज रहे हैं।
आज का युवा भावनात्मक तौर पर अनाथ हो चुका है।
सोशल मीडिया: जिम्मेदार कौन? मोबाइल, माता-पिता या खुद युवा?
माता-पिता व्यस्त हैं – आज की दौड़ में घर में साथ हैं, पर मन से दूर।
शिक्षा प्रणाली रटने पर केंद्रित है, जीवन जीने की कला नहीं सिखाती।
युवा खुद को अकेला और असुरक्षित महसूस करता है, इसलिए इंस्टा की चमक में सुकून ढूंढता है।
फेसबुक-इंस्टा से एआई तक: जब समझ से चले तकनीक, तब बदलता है भविष्य
आज AI, कोडिंग, डिजिटल मार्केटिंग, व्लॉगिंग, एजुकेशनल ऐप्स, साइंस एक्सप्लोरेशन – सब कुछ आपके मोबाइल में है। लेकिन ये सब वही देख सकता है जो सिर्फ स्क्रीन नहीं, सोच भी खोलता है।
समाधान: अब समय है युवा-क्रांति का… सही मायनों में डिजिटल क्रांति का
✅ परिवार संवाद को प्राथमिकता दे – हर दिन 30 मिनट बच्चों के साथ बिताएं।
✅ स्कूलों में डिजिटल साक्षरता को अनिवार्य बनाएं – सिर्फ टेक्नोलॉजी नहीं, इसकी नैतिकता भी सिखाएं।
✅ हर ब्लॉक लेवल पर डिजिटल काउंसलिंग सेंटर बने – जहां कोई शर्म न हो, समाधान हो।
✅ युवाओं को स्थानीय डिजिटल नायक बनाएं – जो अपने गांव के बच्चों को डिजिटल इंडिया से जोड़ें।
मोबाइल में भगवान भी हैं, और रावण भी – फर्क बस इस बात का है, तुम किसे खोलते हो
युवाओं को चाहिए सही सोच, परिवार को चाहिए सही दिशा, और समाज को चाहिए सही दृष्टि। सिर्फ मोबाइल नहीं, अपने बच्चों को मूल्य दीजिए, संवाद दीजिए, और भरोसे की वो नींव दीजिए जिससे वे सोशल मीडिया को साधन बनाएं – साध्य नहीं।
यही चेतावनी है, यही प्रेरणा भी। क्योंकि मोबाइल आपका दास हो तो सफलता तय है – लेकिन आप उसके दास बन जाएं तो पतन निश्चित है।
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