श्रीकृष्ण लीला सुन श्रद्धालू हुए भाव विभोर
संथाल हूल एक्सप्रेस संवाददाता
जामताड़ा : फतेहपुर प्रखंड क्षेत्र के अंतर्गत विंदापाथर गाँव के पंडित टोला में शुक्रवार को सोलह आना द्वारा आयोजित 24 प्रहर अंखड हरिनाम संकीर्तन कुंजविलास व नर नारायण सेवा के साथ संपन्न हुआ। आयोजित इस कार्यक्रम में पश्चिम बंगाल के बर्द्धमान जिला के लोकप्रिय एवं प्रसिद्ध संकीर्तन गायिका तनुश्री घोष एवं उनके सहयोगी दल ने भगवान श्री कृष्ण के लीला संकीर्तन की मथुर शब्दों के माध्यम से जीवंत प्रस्तुति कर माहौल को कृष्ण भक्ति मय बना दिया और भक्तों को रसास्वादन कर दिया। संकीर्तन में कृष्ण लीला की प्रस्तुति के क्रम में कृष्ण-सुदामा चरित्र पाला, रास लीला सहित कई प्रसंगों की आकर्षक प्रस्तूति कर सभी उपस्थित श्रद्धालुओं को सम्मोहित कर दिया। इस दौरान उन्होंने कहा कि भगवान श्री कृष्ण ने जीव जगत को शिक्षा देने के लिए ये लीलाएं की। कलियुग में जीवों का अल्प आयु के कारण उद्धार का एकमात्र उपाय हरिनाम संकीर्तन है। दिन भर अपने कर्म करते हुए कम से कम एक बार सच्चे मन से भगवान का स्मरण करना चाहिए। लीला के क्रम में कहा कि गौरांग महाप्रभु जात पात ऊंच नीज का भेदभाव से ऊपर उठकर समाज को एक सूत्र में बाँधने का प्रयास किया है। उन्होनें बताया कि शरद पूर्णिमा की रात को ईश्वर ने महारास का मन बनाया। उन्होंने योगमाया का सहारा लिया। श्वेत वस्त्रों व आभूषणों से अद्भुत श्रृंगार कर वे तुलसी के वृक्षों से आच्छादित वृंदावन पहुंचे और बांसुरी बजानी शुरु की। राग गोपियों के कानों तक पहुंचा। गोपियां घरों में काम-काज में व्यस्त थीं परंतु जैसे ही बांसुरी का नाद कानों में पड़ा अदम्य आकर्षण के वशीभूत होकर सब कुछ छोड़कर कृष्ण के पास वृंदावन में जा पहुंची और यहां भगवान ने उनके साथ रास रचाया। भगवान ने प्रत्येक गोपी के लिए एक स्वरुप प्रकट किया। बड़ी संख्या में गोपियां वृंदावन में पहुंची थी और हर एक के साथ श्री कृष्ण मौजूद थे। गोविंद बाबा ने कहा कि गैर जानकार लोग महारास को शारीरिक मिलन के तौर पर देखते हैं जबकि वास्तव में यह भक्ति की पराकाष्ठा है। सांसारिक आसक्तियों को छोड़कर गोपियों की वन में भगवान कृष्ण की ओर दौड़ वास्तव में व्यक्ति की अंतर्मन की ओर दौड़ है। भगवान की भक्ति से मन निर्मल हो जाता है। भक्त का विकार रहित,शांत और शीतल मन ही शरदपूर्णिमा के चंद्रमा के समान है। व्यक्ति की आत्मा कृष्ण है और अंदर से उठता भगवत् भक्ति का नाद कृष्ण की वेणु है। अंतःकरण की वृत्तियां गोपियां हैं। वेणु रुपी अंतर्नाद को सुनकर गोपी रुपी अंतःकरण की वृत्तियां जब आत्मा रुपी कृष्ण की भक्ति में लीन हो जाती हैं तो इसे ही महारास कहा जाता है। यही भक्ति की उच्चतम स्थिति है। योग की दृष्टि से इसे ही समाधि कहा जाता है और भागवत में इसे ही महारास कहा गया है। इस दौरान राधा कृष्ण और महारास का सजीव प्रस्तुतिकरण भी किया गया। कीर्तनिया ने आगे कहा कि हम सभी सांसारिक जीव को हमेशा सत्कर्म व जीवों के प्रति दया भाव रखना चाहिए। कहा सभी जीवों में भगवान का अंश है। अक्सर लोग बिना कुछ सोचे समझे गलत कार्य कर बैठते है। तथा अच्छे फल प्राप्ति की आशा करते हैं। जो कदापि संभव नही है। कहा कि सुंदर समाज निर्माण के लिए सत्संग व सत्कर्म करना चाहिए। कीर्तनिया गायिकी के द्वारा भजनों की ऐसी धारा बहाई कि श्रद्धालू भक्ति में झूमने लगें। इसी दौरान कुंजविलास के वाद उपस्थित भक्तजनों के बीच खिचड़ी प्रसाद वितरण किया गया। इस अवसर पर विंदापाथर गाँव के अलावे आस-पास गाँव के लोग 4 दिनों तक भक्ति रस में डुबे रहें। मौके पर काफी संख्या में श्रद्धालु और ग्रामीण भक्त गण उपस्थित थे।