दिन ऐ इस्लाम के बानी पैग़म्बर मुहम्मद ﷺ का आज इस दुनिया में आए लगभग 1500 साल हो गया। आज पूरी दुनिया उनके उनके पैदाइश की जश्न मना रही है, उनके तालिमात को आज भी दुनिया के लिए रोल मॉडल के रूप में मना जा रहा है। पैग़म्बर मुहम्मद ﷺ आख़िरी ख़ुत्बा एक आलमी अख़लाक़ी पैग़ाम था, हर इंसान के साथ इज़्ज़त और गरिमा से पेश आओ। इंसाफ़ और बराबरी को क़ायम रखो। ज़िंदगी, माल और हुक़ूक़ की हिफ़ाज़त करो। सच्चाई, रहमत और ज़िम्मेदारी के साथ क़ियादत करो। औरतों का एहतराम करो, अमानत की हिफ़ाज़त करो और अख़लाक़ी नज़्म को मज़बूत करो।
ये उसूल आज भी ज़िंदा हैं—दुनिया के दस्तूरों में, आलमी क़ानूनों में, इंसानी हुक़ूक़ की तहरीकों में, समाजी इंसाफ़ की जद्दोजहद में और आलमी सतह पर अख़लाक़ी क़ियादत में। ये हमें याद दिलाते हैं कि ईमान सिर्फ़ ज़ाती मामला नहीं, बल्कि एक समाजी ज़िम्मेदारी भी है।
ये ख़ुत्बा आज भी गूँजता है जब लोग ज़ुल्म के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाते हैं, मज़लूमों को ताक़त देते हैं और समुदायों के दरमियान पुल बनाते हैं; पैग़म्बर ﷺ की आवाज़ अमल के ज़रिये बोलती है और इंसानियत को अमन, इंसाफ़ और अख़लाक़ी पाकीज़गी की तरफ़ रहनुमाई करती है। ये ख़ुत्बा शुरू में हाजियों को मुख़ातिब था, लेकिन इसका पैग़ाम पूरी इंसानियत के लिए है।
- बराबरी और क़ानून व पॉलिसी में बग़ैर भेदभाव के निज़ाम:
पैग़म्बर ﷺ ने फ़रमाया: “सारी इंसानियत आदम और हव्वा से है। किसी अरब को ग़ैर-अरब पर कोई बड़ाई नहीं, और न ग़ैर-अरब को अरब पर; न गोरे को काले पर कोई बड़ाई है, न काले को गोरे पर—सिवाए तक़वा और नेक आमाल के।”
आलमी ऐलान-ए-हुक़ूक़-ए-इंसानी (1948): आर्टिकल 1 कहता है कि सब इंसान बराबर और इज़्ज़त व हुक़ूक़ के साथ पैदा होते हैं, जो इस ख़ुत्बे के पैग़ाम-ए-बराबरी से मेल खाता है।
सिविल राइट्स तहरीक: मार्टिन लूथर किंग जूनियर जैसे रहनुमा नस्ली बराबरी की जद्दोजहद में इंसानी गरिमा को सामने लाए, जो पैग़म्बर ﷺ के उस नज़रिये से मेल खाता है जिसमें नस्ली या क़ौमी बड़ाई को नकारा गया।
भेदभाव-विरोधी आलमी क़ानून: बहुत से ममालिक के दस्तूर अब नस्ल, मज़हब या क़ौमियत की बुनियाद पर भेदभाव को मनअ करते हैं—जो सीधे इस ख़ुत्बे के अख़लाक़ी हुक्म से जुड़ता है। - ज़िंदगी और माल की हिफ़ाज़त:
पैग़म्बर ﷺ ने फ़रमाया: “तुम्हारी ज़िंदगियाँ और तुम्हारे माल तुम्हारे रब से मिलने तक मुक़द्दस हैं।”
जेनेवा कन्वेंशन (1949): ये आलमी मौहिदे जंग के दौरान शहरी आबादी और माल की हिफ़ाज़त करते हैं, जो इस ख़ुत्बे के उस उसूल से मेल खाता है कि इंसानी जान और माल महफ़ूज़ हैं।
जम्हूरी निज़ाम में क़ानून की हुकूमत: दस्तूर और अदालतें दुनिया भर में अफ़राद को नाइंसाफ़ी से बचाती हैं, जो इंसाफ़ और हिफ़ाज़त पर दिए गए ज़ोर को बयान करती हैं।
- अख़लाक़ी क़ियादत और अमानतदारी:
पैग़म्बर ﷺ ने फ़रमाया: “अमानत उसके मालिक को वापस करो। किसी पर नाइंसाफ़ी मत करो।”
इदारों में अख़लाक़ी क़ियादत के उसूल, जैसे भ्रष्टाचार-विरोधी क़दम और ज़िम्मेदारी निभाना, इस हुक्म से मेल खाते हैं।
ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल जैसी तन्ज़ीमें ईमानदार क़ियादत की हिमायत करती हैं, जो पैग़म्बर ﷺ की ख़ियानत और ज़ुल्म के खिलाफ़ चेतावनी से मेल खाती हैं।
वो रहनुमा जो पारदर्शिता, इंसाफ़ और अवाम की भलाई को तरजीह देते हैं, इस ख़ुत्बे के अख़लाक़ी नक़्शे पर चलते हैं।
- औरतों के हुक़ूक़ और गरिमा:
पैग़म्बर ﷺ ने याद दिलाया: “औरतों के साथ अच्छा सुलूक करो, वो तुम्हारी शरीक-ए-हयात और मददगार हैं।”
CEDAW (1979): औरतों के ख़िलाफ़ तमाम भेदभाव को ख़त्म करने का आलमी मौहिदा बराबरी को तस्लीम करता है, जो पैग़म्बर ﷺ के हुक्म से मेल खाता है।
तालीम, रोज़गार में बराबरी और तशद्दुद से हिफ़ाज़त की पॉलिसियाँ इस पैग़ाम को ज़ाहिर करती हैं।
मलाला यूसुफ़ज़ई की लड़कियों की तालीम के लिए जद्दोजहद से लेकर लैंगिक तशद्दुद के ख़िलाफ़ आलमी मुहिम तक, इज़्ज़त और गरिमा का यह पैग़ाम पैग़म्बर ﷺ के तालीमात से मेल खाता है। - ईमान को अमल में लाना और अख़लाक़ी ज़िम्मेदारी:
पैग़म्बर ﷺ ने फ़रमाया: “मैं तुम्हारे दरमियान दो चीज़ें छोड़ रहा हूँ: कुरआन और मेरी सुन्नत। जब तक तुम इन्हें मज़बूती से थामे रहोगे, तुम कभी गुमराह नहीं होगे।”
वो हुकूमतें जो अपनी पॉलिसियों में अख़लाक़ी उसूलों को शामिल करती हैं, जैसे स्कैंडिनेवियाई ममालिक जहाँ समाजी फ़लाह और इंसाफ़ को अहमियत दी जाती है, इस हिदायत को ज़ाहिर करती हैं।
वो तन्ज़ीमें और एनजीओ जो सच्चाई और रहमत के साथ काम करती हैं, ईमान को अमल में बदलने का नमूना हैं।
स्कूलों में अख़लाक़, शहरी फ़र्ज़ और समाजी ज़िम्मेदारी की तालीम इस ख़ुत्बे में बताए गए उसूलों को आगे बढ़ाती है।
- अमन और हमआहंगी का फ़रोग़:
इस ख़ुत्बे का असल मौज़ू है इंसाफ़, हमआहंगी और अख़लाक़ी ज़िंदगी।
यूएन चार्टर के अमन, इंसानी हुक़ूक़ और तावुन के मक़ासिद इस ख़ुत्बे की उस तसव्वुर से मेल खाते हैं जिसमें इंसाफ़ पर आधारित आलमी समाज की बात की गई।
मज़ाहिब के दरमियान तफ़ाहुम और गुफ़्तगू बढ़ाने वाले प्रोग्राम, जैसे Parliament of the World’s Religions, पैग़म्बर ﷺ की आलमी रहनुमाई को बयान करते हैं।
वो तन्ज़ीमें जो मज़हब, नस्ल या क़ौमियत की परवाह किए बग़ैर इंसानियत की मदद करती हैं, जैसे Médecins sans frontières (Doctors Without Borders) या International Committee of the Red Cross, इस ख़ुत्बे के उस पैग़ाम को अमल में लाती हैं जिसमें इंसानियत की ख़िदमत को सबसे ऊँचा दर्जा दिया गया.