संथाल हूल एक्सप्रेस डेस्क | भोपाल/पीथमपुर
साल 1984 में हुई भोपाल गैस त्रासदी की दर्दनाक यादें आज भी लोगों के ज़ेहन में ताजा हैं। मिथाइल आइसोसाइनेट गैस का वह रिसाव जिसने हजारों जिंदगियां निगल लीं और लाखों लोगों को जीवनभर की बीमारी दे दी, उसका ज़हरीला बोझ अब जाकर 40 साल बाद खत्म हुआ है।
मध्य प्रदेश सरकार ने न्यायालय के आदेश और पर्यावरण नियामक संस्थाओं की सख्त निगरानी में यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री में जमा 337 टन जहरीले कचरे को आखिरकार सुरक्षित तरीके से नष्ट कर दिया।
कहां और कैसे हुआ कचरे का निपटान?
धार जिले के पीथमपुर स्थित रामकी एनवायरो इंजीनियर्स लिमिटेड के अपशिष्ट प्रबंधन संयंत्र में इस घातक कचरे को 5 मई से लेकर 30 जून तक खास तापमान और तकनीकी प्रक्रियाओं के जरिये जलाया गया।
इससे पहले जनवरी में 30 टन कचरे का परीक्षण किया गया था। सफलता मिलने के बाद शेष 307 टन कचरे को हर घंटे करीब 270 किलो की रफ्तार से जलाया गया।
प्रदूषण नियंत्रण पर खास नजर
प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने न केवल ऑनलाइन बल्कि मैनुअल निगरानी सिस्टम के जरिए पूरे प्रक्रिया पर बारीकी से नजर रखी। सभी सुरक्षा मानकों का पालन करते हुए यह निपटान कार्य किया गया।
राख और बचा हुआ कचरा भी होगा सुरक्षित निपटान
कचरे के जलने के बाद जो राख बची है उसे विशेष लैंडफिल साइट पर सुरक्षित तरीके से रखा जाएगा। यह साइट दो महीने के भीतर पूरी तरह तैयार हो जाएगी, जो बारिश के पानी या भूजल से भी सुरक्षित रहेगी।
साथ ही अतिरिक्त बचे हुए 19 टन मिट्टी में मिला कचरा और 2.22 टन पैकेजिंग वेस्ट भी 3 जुलाई तक पूरी तरह नष्ट कर दिया जाएगा।
स्थानीय लोगों का विरोध, लेकिन सरकार अडिग
कचरे को जब पीथमपुर लाया गया तो स्थानीय लोगों ने इसका विरोध किया। धरने और आत्मदाह की धमकियों के बीच विरोध की आग कांग्रेस और अन्य संगठनों ने भी खूब भड़काई। लेकिन जबलपुर हाईकोर्ट के आदेश और सुरक्षा बलों की तैनाती के बीच आखिरकार यह प्रक्रिया पूरी हुई।
तकनीकी सफलता, लेकिन घाव अभी भी बाकी
सरकार और पर्यावरण एजेंसियों के लिए यह निपटान तकनीकी सफलता भले हो, लेकिन भोपाल के हजारों पीड़ितों के लिए यह त्रासदी हमेशा एक न भरने वाला जख्म ही रहेगी।
