कई योजना में एक ईट तक लगी नही और हो गई लाखो कई निकासी
महेशपुर (पाकुड़)
जयपुर बरुंगा पंचायत की दर्जनों विकास योजनाएं सिर्फ कागजों में पूरी हो गई हैं। वहीं ज़मीन पर इनका कोई नामोनिशान नहीं है। इससे नाराज ग्रामीणों ने पंचायत के मुखिया, सचिव व सदस्यों पर मिलीभगत कर सरकारी राशि की गमन का आरोप लगाया है।
ग्रामीण जसीणुद्दीन शेख (निवासी – जयपुर नयाग्राम, महेशपुर) ने अपने लिखित आवेदन के माध्यम से जिला प्रशासन पाकुड़ डीसक व डीडीसी को डाक पोस्ट के माध्यम से सूचित किया है कि पंचायत के तहत चल रही बौयलार कुक्कुट शेड, पशुधन विकास, पशु शेड, एवं विरसा हरित ग्राम योजना जैसी योजनाएं केवल नाम के लिए हैं। इन योजनाओं की भुगतान सूची तो सार्वजनिक पोर्टल पर दिख रही है, लेकिन वास्तव में कोई कार्य धरातल पर नहीं हुआ है।
कागज़ों पर बना कुक्कुट शेड, लेकिन गांव में नहीं दिखा ढांचा—–*
शेख ने दस्तावेजी प्रमाणों सहित कुल 24 योजनाओं की सूची दी है, जिनमें लाभुकों के नाम, योजना संख्या व भुगतान विवरण शामिल हैं। जैसे:
- लिलीमा बीबी को 98,760 का भुगतान हुआ, जिसमें मिस्त्री और मैटेरियल का अलग भुगतान शामिल है।
- नाहीदा बीबी को भी बौयलार कुक्कुट शेड के तहत 18,000 से अधिक की राशि दी गई।
- एजेकर सेख को पशु शेड के लिए ₹84,000 से अधिक का भुगतान दिखाया गया है।
- मायनु मराण्डी, मेलो हेम्ब्रम, मरांग वेटी हेम्ब्रम जैसे कई लाभुकों के नाम पर बौयलार कुक्कुट योजना के तहत लाखों रुपये खर्च किए गए हैं, लेकिन इनका कोई भौतिक सत्यापन नहीं हुआ है। विरसा हरित ग्राम योजना भी संदेह के घेरे में—-
पाथरघट्टा (लालडांगा) के एतेफान टुडू के नाम पर विरसा हरित ग्राम योजना के तहत 43,384 मजदूरी व 15,889 मेटेरियल का भुगतान किया गया। इसी तरह अमृतपुर के संजित मंडल को भी योजना राशि दी गई, लेकिन पौधारोपण या कोई भी पर्यावरणीय विकास नजर नहीं आ रहा।
जांच की उठी मांग, ग्रामीणों ने की कानूनी कार्रवाई की मांग—-
शिकायतकर्ता श्री शेख ने स्पष्ट रूप से कहा है कि इन योजनाओं की धनराशि का गमन पंचायत के जनप्रतिनिधियों और पदाधिकारियों द्वारा मिलीभगत से किया गया है। उन्होंने जिला प्रशासन से मांग की है कि:
- इन सभी योजनाओं की भौतिक जांच करवाई जाए।
- दोषी पाए जाने पर पंचायत के मुखिया, सचिव और संबंधित सदस्यों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाए।
- योजनाओं का लाभ वास्तव में जरूरतमंदों तक पहुंचे, यह सुनिश्चित किया जाए।
ग्रामीणों की इस शिकायत से एक बार फिर पंचायतों में पारदर्शिता और जवाबदेही को लेकर सवाल खड़े हो गए हैं।
