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संघर्ष की चाय, सपनों की पकौड़ी और सफलता की अनन्या कहानी

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लेखक: सौरभ राय | विशेष संवाददाता, संथाल हूल एक्सप्रेस

रांची:रांची की तंग गलियों से निकली एक आवाज़ आज पूरे राज्य में गूंज रही है — यह आवाज़ है अनन्या पाल की, जिसने इंटरमीडिएट आर्ट्स में 92.5% अंक प्राप्त कर रांची जिला टॉप किया है और राज्य में पांचवां स्थान हासिल कर सबका ध्यान अपनी ओर खींचा है। लेकिन अनन्या की सफलता केवल अंकों की कहानी नहीं है — यह एक संघर्ष से सजी जीवंत कथा है, जहां सपनों को भूख, गरीबी और सीमाओं ने कई बार रोका, लेकिन हौसले ने कभी हार नहीं मानी।

पकौड़ी की दुकान से टॉप तक का सफर

लेक रोड, रांची की एक छोटी सी गली में अनन्या का घर है। घर के बाहर एक तिरपाल के नीचे उनके माता-पिता पकौड़ी की दुकान चलाते हैं। यही उनकी आजीविका का एकमात्र साधन है। रोज़ाना 300 से 400 रुपये की कमाई में पूरे परिवार की ज़रूरतें पूरी करना किसी चुनौती से कम नहीं। लेकिन इसी दुकान की खुशबू में पली-बढ़ी अनन्या ने यह ठान लिया था कि वह पढ़ेगी, बढ़ेगी और एक दिन कुछ बड़ा करेगी।

“मम्मी-पापा की मेहनत देखकर पढ़ाई के लिए खुद को झोंक दिया। सेल्फ स्टडी ही मेरा सहारा बनी,” अनन्या कहती हैं। उनके पिता की आँखें भर आती हैं जब वे कहते हैं, “हम जो कर सकते थे, किया। लेकिन अब आगे की पढ़ाई के लिए हाथ तंग हैं।”

कोचिंग नहीं, आत्मविश्वास ही बना सहारा

वो दौर जब हर दूसरा छात्र कोचिंग और ट्यूशन के पीछे भागता है, अनन्या ने ठान लिया कि वे बिना किसी अतिरिक्त मदद के पढ़ाई करेंगी। “स्कूल में जो पढ़ाया गया, उसी को घर आकर दोहराती थी। समय का सही उपयोग और लगातार अभ्यास ही मेरी सफलता की चाबी बने,” वे मुस्कराते हुए कहती हैं।

अनन्या का मानना है कि अगर इच्छा शक्ति हो, तो सुविधाओं की कमी भी राह में बाधा नहीं बनती। उनका यह दृष्टिकोण आज के युवाओं के लिए एक प्रेरणा है।

सपना: बनना है IAS, लेकिन सामने है दीवार

अनन्या का सपना है भारतीय सिविल सेवा में जाना और एक ईमानदार अफसर बनकर समाज में बदलाव लाना। लेकिन गरीबी की दीवार अब उसके सपनों के सामने खड़ी है। “आगे की पढ़ाई और सिविल सेवा की तैयारी के लिए जो ज़रूरी है, वो हमारे पास नहीं है,” उनके पिता दुखी मन से कहते हैं।

अनन्या के मन में डर है कि कहीं परिस्थितियाँ उन्हें पढ़ाई छोड़कर परिवार की मदद के लिए दुकान पर बैठने को मजबूर न कर दें। “अगर मदद नहीं मिली, तो मुझे बिजनेस ही करना पड़ेगा। लेकिन दिल में तो देश सेवा का सपना है,” वे धीमी आवाज़ में कहती हैं।

सवाल हम सबके सामने है

आज जब हम “बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ” की बात करते हैं, तो यह देखना होगा कि अनन्या जैसी बेटियों को बचाने और पढ़ाने की असल ज़रूरत कहाँ है। यह केवल सरकार की नहीं, समाज की भी ज़िम्मेदारी है कि ऐसे होनहार छात्रों को आर्थिक सहायता, स्कॉलरशिप और मार्गदर्शन प्रदान किया जाए।

अनन्या पाल केवल एक नाम नहीं है — यह एक आवाज़ है उन लाखों लड़कियों की जो संसाधनों की कमी के बावजूद अपने सपनों को जिंदा रखे हुए हैं।


अंत में…

अनन्या की कहानी हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि हम कितनी बार ऐसे प्रतिभाशाली छात्रों की तरफ़ ध्यान देते हैं? क्या हम उनके लिए कुछ कर सकते हैं? अगर हाँ, तो आज ही हाथ बढ़ाइए, क्योंकि एक अनन्या की उड़ान, पूरे समाज की उड़ान बन सकती है।


यदि आप अनन्या की मदद करना चाहते हैं या उन्हें स्कॉलरशिप/गाइडेंस देना चाहते हैं, तो कृपया संथाल हूल एक्सप्रेस से संपर्क करें।

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