चाईबासा/रांची।
झारखंड की धरती संघर्ष और जज़्बे की कहानियों से भरी पड़ी है। पश्चिम सिंहभूम जिले के सुदूरवर्ती बरांगा गाँव के निवासी गुलशन लोहार की जिंदगी भी ऐसी ही प्रेरणादायी मिसाल है।

जन्म से दोनों हाथ न होने के बावजूद गुलशन की माँ ने हार नहीं मानी। उन्होंने बचपन से ही बेटे को पैरों से चॉक और पेंसिल पकड़ना सिखाया। तीन साल की उम्र से शुरू हुआ यह संघर्ष, धीरे-धीरे एक नई दिशा में बढ़ता गया।
शिक्षा में की बड़ी उपलब्धि
गुलशन ने गाँव के साधारण स्कूल से लेकर हाई स्कूल की परीक्षा तक हमेशा टॉप किया। पैरों से लिखकर उन्होंने बीएड और राजनीति शास्त्र में पोस्टग्रेजुएशन तक की पढ़ाई पूरी की। उनकी मेहनत और लगन के कारण उन्हें अपने ही गाँव के स्कूल में गणित पढ़ाने का अवसर मिला।

पैर से लिखकर बच्चों को दे रहे शिक्षा
आज गुलशन लोहार गाँव के स्कूल में ब्लैकबोर्ड पर पैरों से लिखकर बच्चों को गणित पढ़ाते हैं। बच्चे भी उनके संघर्ष से प्रेरणा लेते हैं और पूरे गाँव में वे आदर्श शिक्षक के रूप में पहचाने जाते हैं।
संघर्ष अब भी जारी – स्थाई नौकरी का इंतज़ार
इतनी मेहनत और योग्यता के बावजूद गुलशन को आज तक स्थाई नौकरी नहीं मिल पाई है। वे “नो वर्क, नो पे” नीति के तहत मानदेय पर निर्भर हैं, जो कभी बढ़ जाता है तो कभी घट जाता है।
एक ऐसे शिक्षक, जिसने जीवन शिक्षा को समर्पित कर दी, आज भी आर्थिक असुरक्षा से जूझ रहे हैं। वे कहते हैं कि उनकी सबसे बड़ी उम्मीद है कि सरकार शिक्षक पात्रता परीक्षा की बहाली करे ताकि उन्हें स्थाई नौकरी मिल सके।

समाज और सरकार से अपील
गुलशन लोहार केवल शिक्षक ही नहीं, बल्कि पूरे समाज के लिए प्रेरणा हैं। उनके संघर्ष और जज़्बे की कहानी यह बताती है कि इच्छाशक्ति और मेहनत से असंभव भी संभव किया जा सकता है।
अब राज्य सरकार की जिम्मेदारी है कि ऐसे शिक्षकों को न केवल सम्मान दे, बल्कि उनकी आर्थिक सुरक्षा भी सुनिश्चित करे, ताकि वे बिना चिंता के आने वाली पीढ़ियों का भविष्य संवार सकें।
