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बचपन की यादें: बारिश और खुशियों का वो दौर

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संथाल हूल एक्सप्रेस सेंट्रल डेस्क

आजकल की तेज़ रफ्तार जिंदगी में, लोगों ने अपनी मासूमियत और बचपन की खुशियों को भुला दिया है। बारिश के दिन जब बाहर खड़े होकर कागज की कश्तियाँ बनाना, उन्हें बहा देना और पानी में छपाकछई करना एक आम बात थी, वही आज की भागदौड़ में कहीं खो गई है। सामाजिक और व्यक्तिगत जिम्मेदारियों ने हमें इतनी गंभीर बना दिया है कि हम छोटी-छोटी खुशियों का आनंद लेना भूल गए हैं।

बारिश की खामोशियाँ

वो दिन याद कीजिए जब बारिश की हर बूँद एक नई आशा और हंसी लेकर आती थी। एक बंद कमरे की खुली खिड़की से बाहर देखना, बारिश की बूंदों को टपकते हुए देखना, और बिना सोचे-समझे दरवाजा खोलकर बाहर दौड़ जाना – यह सब अच्छे बचपन की बाते हैं। आज की युवा पीढ़ी इस हंसी-मज़ाक से वंचित होती जा रही है, जिसका खामियाजा केवल मानसिक तनाव और अवसाद के रूप में सामने आ रहा है।

समझदारी पर मासूमियत की जीत

बचपन में होने वाली छोटी-छोटी चीजें, जैसे कागज की कश्ती बनाना और उसे बारिश में बहाना, सच्ची खुशी का माध्यम थीं। आज की दुनिया में बड़ी-बड़ी सफलताएं और उपलब्धियाँ भी पहले जैसी खुशी नहीं दे पातीं। जिम्मेदारियों ने हमारे दिमाग में एक ऐसी समझदारी भर दी है जो कभी-कभी हमारे दिल में छिपे उस बच्चे को मार देती है जो अपने हंसने-खिलखिलाने में असमर्थ है।

सुझाव: फिर से अपने भीतर के बच्चे को जगाना

कभी-कभी, ज़रूरी है कि हम इस समझदारी को एक तरफ रखकर बारिश की मस्ती को जीने का फैसला करें। इसलिए, अगली बारिश में अपने भीतर के बच्चे को जगाने का प्रयास करें। कागज की कश्तियाँ बनाएं, बारिश में दौड़ें और बिना किसी सोच-विचार के हंसे-खिलखिलाएं। एक बार फिर से दिल को आज़ाद करने का यह मौका न चूकें। क्योंकि सचमुच, अगर हम फिर से बच्चों की तरह जिएँगे, तो दिल में खुशी का एक नया खजाना मिलेगा, जो आज की भागदौड़ वाली दुनिया में सबसे मूल्यवान होगा।

बचपन की मासूमियत और खुशियाँ हमें जीवन का वास्तविक अर्थ सिखाती हैं। इसलिए, कभी-कभी बारिश के पानी में छपाकछई करना, कागज की कश्तियों को बहाना और छोटी खुशियों का आनंद लेना चाहिए। यह न केवल हमारे मानसिक स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद है, बल्कि जीवन में खुशियों की बहार लाने का भी एक अनमोल तरीका है।

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