रांची। झारखंड के प्रसिद्ध टाना भगत समुदाय से जुड़े और पूर्ण रूप से गांधीवादी विचारधारा को जीवन में उतार चुके बिग्गा टाना भगत ने हाल के राजनीतिक घटनाक्रम पर कड़ी प्रतिक्रिया दी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दिवंगत माता हीराबेन मोदी के प्रति असम्मानजनक टिप्पणी को लेकर उन्होंने सार्वजनिक रूप से कान पकड़कर माफी मांगी और गांधीवादी परंपरा का पालन करते हुए शालीनता और नैतिकता की मिसाल पेश की।
उन्होंने कहा कि “राजनीति विचारों का संघर्ष होना चाहिए, व्यक्तिगत अपमान का नहीं। किसी भी नेता की माता का अपमान, चाहे वह किसी भी दल से हो, भारतीय संस्कृति और लोकतांत्रिक परंपरा का घोर उल्लंघन है। माताओं का सम्मान हर धर्म और समाज की साझा धरोहर है।”
बिग्गा टाना भगत, महात्मा गांधी के सिद्धांतों – सत्य, अहिंसा और सादगी – को मानने वाले टाना भगत समुदाय से आते हैं। यह समुदाय झारखंड में स्वतंत्रता संग्राम के दौरान भी अहिंसक आंदोलन का हिस्सा रहा है। उन्होंने इस परंपरा को आगे बढ़ाते हुए एक बार फिर सामाजिक और राजनीतिक शालीनता का संदेश दिया है।
उन्होंने इस विवाद को “राजनीतिक नीचता का चरम” बताया और सभी दलों से आग्रह किया कि चुनावी या राजनीतिक बहस को मुद्दों पर केंद्रित रखें, न कि व्यक्तिगत जीवन या परिवार पर।
उन्होंने कहा कि “लोकतंत्र तभी सशक्त होगा जब हम असहमति को सम्मानजनक शब्दों में व्यक्त करेंगे। दुर्भाग्य है कि आज बहस का स्तर गिरकर व्यक्तिगत कटाक्ष तक पहुँच गया है।”
भाजपा नेताओं ने बिग्गा टाना भगत की इस पहल को “गांधीवादी चेतना की जीवित मिसाल” बताया और कहा कि इससे समाज को संयम और शांति का संदेश मिलेगा।
विपक्षी दलों ने भी माना कि व्यक्तिगत और पारिवारिक टिप्पणियाँ राजनीति के लिए उचित नहीं हैं और इससे जनता में गलत संदेश जाता है।
वहीं, कई सामाजिक कार्यकर्ताओं और बुद्धिजीवियों ने कहा कि बिग्गा टाना भगत का यह कदम सभी नेताओं को आत्ममंथन करने का अवसर देता है।
स्थानीय लोगों का कहना है कि आज राजनीति में जिस तरह की कटुता और आरोप-प्रत्यारोप का दौर चल रहा है, उसमें बिग्गा टाना भगत का यह संदेश एक ताजगी भरी हवा की तरह है।
ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों ने कहा कि टाना भगत जैसे नेता समाज को यह याद दिलाते हैं कि राजनीति सेवा का माध्यम है, न कि अपमान का।
बिग्गा टाना भगत की यह पहल केवल एक माफी नहीं, बल्कि राजनीति को मर्यादा और शालीनता की ओर लौटाने की अहिंसक अपील है। उनका यह कदम दर्शाता है कि गांधीवादी विचारधारा आज भी समाज को सही दिशा दिखाने में सक्षम है।
